Teachers Day 2025: भारत की महान महिला शिक्षिकाएं जिनसे शिक्षा और सशक्तिकरण की गाथा अधूरी है

Teachers Day 2025: हर साल 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस (Teacher’s Day) मनाया जाता है। यह दिन न केवल डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के अवसर पर उनके योगदान को याद करने का दिन है, बल्कि यह उन सभी शिक्षकों को सम्मानित करने का भी अवसर है जो समाज में ज्ञान की ज्योति जलाए रखते हैं।
शिक्षा को हमेशा से मानव विकास की कुंजी माना गया है। लेकिन भारत के इतिहास में एक दौर ऐसा भी रहा जब महिलाओं के लिए शिक्षा पाना असंभव सा सपना था। समाज की परंपराएं और रूढ़िवादी सोच लड़कियों की शिक्षा के आड़े आती थीं। इसी कठिन दौर में कुछ महान महिलाओं ने न केवल शिक्षा का महत्व समझा बल्कि समाज की सोच को बदलते हुए महिलाओं के लिए शिक्षा के नए दरवाजे खोले।
इस Teacher’s Day 2025 पर आइए जानते हैं उन महान महिलाओं और प्रेरणादायी शिक्षिकाओं की कहानियाँ, जिनके बिना शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की गाथा अधूरी है।
भारत की पहली महिला टीचर: सावित्रीबाई फुले
भारत में महिला शिक्षा की गाथा की शुरुआत सावित्रीबाई फुले से हुई। उन्हें भारत की पहली महिला शिक्षिका कहा जाता है।
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1848 में पुणे में पहला बालिका विद्यालय उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ खोला।
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सावित्रीबाई जब स्कूल जाती थीं तो लोग उन पर पत्थर और कीचड़ फेंकते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
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उन्होंने लड़कियों और दलितों को शिक्षा देने का साहस दिखाया।
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सावित्रीबाई का संघर्ष आज करोड़ों बच्चियों की शिक्षा की नींव बना।
अगर आज महिलाएं डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और शिक्षक बन रही हैं, तो इसकी सबसे पहली रोशनी सावित्रीबाई फुले से ही आई थी।
रुकैया सखावत हुसैन: मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा की पैरोकार
रुकैया सखावत हुसैन बंगाल की मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और नारीवादी विचारक थीं।
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उन्होंने मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा दिलाने की ठानी।
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1910 में भागलपुर और 1911 में कोलकाता में लड़कियों के स्कूल खोले।
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समाज का कड़ा विरोध झेलना पड़ा, लेकिन वे डटी रहीं।
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उन्होंने सखावत मेमोरियल गर्ल्स स्कूल की स्थापना की, जो आज भी कोलकाता में चल रहा है।
रुकैया ने साबित किया कि शिक्षा किसी धर्म या जाति की मोहताज नहीं होती।
रमाबाई रणाडे: शिक्षा सुधार की योद्धा
रमाबाई रणाडे 20वीं सदी के प्रारंभिक दौर की सामाजिक कार्यकर्ता थीं।
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उन्होंने लड़कियों के लिए नाइट स्कूल और प्रशिक्षण केंद्र खोले।
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उनकी पहल से हजारों लड़कियों को पढ़ने का मौका मिला।
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उन्होंने महिला सशक्तिकरण को शिक्षा से जोड़ते हुए समाज को नई दिशा दी।
रमाबाई का सपना था कि हर महिला पढ़े और समाज में बराबरी से खड़ी हो।
आधुनिक भारत की प्रेरणादायी शिक्षिकाएं
आज के समय में भी कई महिला शिक्षिकाएं बच्चों की जिंदगी बदलने के लिए विशेष प्रयास कर रही हैं।
1. डॉ. प्रज्ञा सिंह (छत्तीसगढ़)
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सरकारी स्कूल की शिक्षिका, जिन्हें National Teachers Award 2025 से सम्मानित किया गया।
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उन्होंने मैथ्स पार्क, लाइफ-साइज लूडो, शतरंज और सांप-सीढ़ी जैसे खेलों के जरिए बच्चों को गणित सिखाया।
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उनकी मेहनत से बच्चे पढ़ाई को मजेदार मानने लगे और रिजल्ट 100% आने लगे।
2. गीतिका जोशी (नैनीताल)
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जरूरतमंद छात्रा की फीस चुकाई और खुद टिफिन बनाकर दिया।
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आज वह छात्रा नौकरी कर आत्मनिर्भर है।
3. सीमा भारती झा (दिल्ली विश्वविद्यालय)
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समाजशास्त्र और महिला शिक्षा पर काम करती हैं।
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खासकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों की लड़कियों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करती हैं।
4. शिप्रा गोम्बर (दिल्ली, माउंट आबू स्कूल)
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विद्यार्थियों के लिए तनावमुक्त पढ़ाई का माहौल बनाने की कोशिश।
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इनोवेटिव टीचिंग स्टाइल से बच्चों को पढ़ाती हैं।
5. पुष्पा कुशवाहा (चंदौली, इंटीग्रेटेड इंस्टीट्यूट फॉर डिसेबल्ड)
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विशेष रूप से दिव्यांग बच्चों को शिक्षा दिलाने का कार्य।
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सीमित संसाधनों में बच्चों को बेहतर शिक्षा और आत्मनिर्भरता की राह दिखाई।
इन शिक्षिकाओं ने दिखाया कि टीचर सिर्फ पढ़ाने वाला नहीं होता, बल्कि बच्चों की जिंदगी गढ़ने वाला होता है।
महिला शिक्षिकाओं का शिक्षा और सशक्तिकरण में योगदान
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शिक्षा ने महिलाओं को घर की चारदीवारी से निकालकर आत्मनिर्भर बनाया।
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महिला शिक्षिकाओं ने समाज में बेटियों की पढ़ाई का महत्व समझाया।
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महिलाओं की पढ़ाई से न केवल परिवार, बल्कि पूरी पीढ़ी शिक्षित होती है।
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यह सशक्तिकरण का सबसे मजबूत साधन है।
शिक्षक दिवस और महिला शिक्षिकाओं का महत्व
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शिक्षक दिवस हमें याद दिलाता है कि शिक्षक समाज की आत्मा हैं।
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खासकर महिला शिक्षिकाएं, जो बच्चों को केवल शिक्षा ही नहीं देतीं, बल्कि जीवन जीने के संस्कार भी देती हैं।
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महिला शिक्षिकाओं की वजह से आज देश की लाखों बेटियां डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और नेता बन रही हैं।
Teacher’s Day 2025 सिर्फ डॉ. राधाकृष्णन को याद करने का दिन नहीं है, बल्कि यह उन सभी शिक्षिकाओं को सम्मान देने का भी दिन है जिन्होंने अपनी मेहनत और साहस से बेटियों की शिक्षा की राह आसान बनाई।
सावित्रीबाई फुले, रुकैया सखावत, रमाबाई रणाडे से लेकर आज की शिक्षिकाओं तक – इनकी कहानियां हमें सिखाती हैं कि शिक्षा ही सशक्तिकरण की असली कुंजी है।
👉 अगर आज महिलाएं बराबरी से खड़ी हैं, तो इसमें महिला शिक्षिकाओं का योगदान सबसे बड़ा है।