राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड का पुनर्गठन: पूर्व RAW प्रमुख आलोक जोशी बने अध्यक्ष

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हिंदू तीर्थयात्रियों पर हुए भीषण हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। इस घटना को नरसंहार करार दिया जा रहा है, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया है। हालात युद्ध जैसे बनते नजर आ रहे हैं। इन बदलते सुरक्षा हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) का पुनर्गठन किया है। इस बार बोर्ड की कमान पूर्व रॉ प्रमुख आलोक जोशी को सौंपी गई है।
आलोक जोशी की नियुक्ति इस लिहाज से बेहद अहम मानी जा रही है क्योंकि उन्होंने 2012 से 2014 तक रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के प्रमुख के रूप में सेवाएं दी हैं। खुफिया तंत्र में उनके अनुभव और रणनीतिक दृष्टिकोण की व्यापक सराहना होती रही है। अब उनकी अगुवाई में यह बोर्ड सरकार को आतंकवाद, साइबर सुरक्षा, सीमा प्रबंधन और रणनीतिक नीतियों जैसे अहम मसलों पर सलाह देगा।
बोर्ड में कुल 7 विशेषज्ञ सदस्य
पुनर्गठित NSAB में अब कुल सात सदस्य होंगे, जो अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ हैं। इनमें तीन सैन्य पृष्ठभूमि से, दो भारतीय पुलिस सेवा (IPS) से और एक भारतीय विदेश सेवा (IFS) से सेवानिवृत्त अधिकारी शामिल हैं।
सैन्य पृष्ठभूमि से जो अधिकारी इस बोर्ड में शामिल किए गए हैं, उनमें वेस्टर्न एयर कमान के पूर्व प्रमुख एयर मार्शल पीएम सिन्हा, साउदर्न आर्मी कमान के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल ए.के. सिंह और नौसेना के रिटायर्ड रियर एडमिरल मॉन्टी सन्ना का नाम शामिल है। इन तीनों के पास युद्ध नीति, सामरिक योजना और सैन्य कूटनीति का गहरा अनुभव है।
भारतीय पुलिस सेवा से रिटायर राजीव रंजन वर्मा और मनमोहन सिंह को बोर्ड में शामिल किया गया है। ये दोनों आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी अभियानों में विशेषज्ञता रखते हैं।
इसके अतिरिक्त, विदेश नीति और कूटनीति के क्षेत्र में लंबे अनुभव के साथ भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी बी. वेंकटेश वर्मा को भी बोर्ड का सदस्य बनाया गया है। वे रूस और अन्य महाशक्तियों से संबंधों को लेकर भारत की नीति-निर्माण प्रक्रिया में पहले भी अहम भूमिका निभा चुके हैं।
सरकार ने क्या कहा?
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि NSAB का पुनर्गठन राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए किया गया है। उन्होंने कहा, “देश गंभीर सुरक्षा चुनौतियों से गुजर रहा है। ऐसे में एक मजबूत, अनुभवी और रणनीतिक दृष्टिकोण रखने वाला सलाहकार बोर्ड आवश्यक है। आलोक जोशी जैसे वरिष्ठ खुफिया अधिकारी की अगुवाई में यह बोर्ड सरकार को समय पर और सटीक सलाह देगा।”
प्रधानमंत्री कार्यालय से भी संकेत मिले हैं कि आने वाले समय में NSAB को अधिक अधिकार और संसाधन दिए जा सकते हैं, ताकि वह नीतिगत निर्णयों में और प्रभावशाली भूमिका निभा सके।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
हालांकि विपक्ष ने बोर्ड के पुनर्गठन को समय की मांग बताया है, लेकिन इसके साथ सरकार पर भी सवाल उठाए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा, “हम इस फैसले का स्वागत करते हैं, लेकिन यह कदम पहले क्यों नहीं उठाया गया? पहलगाम जैसी त्रासदी के बाद ही सरकार जागती है। यह हमारी सुरक्षा नीति की विफलता का भी संकेत है।”
वाम दलों ने भी सरकार से यह सवाल किया है कि अगर खुफिया एजेंसियों को सही समय पर जानकारी थी, तो हमले को क्यों नहीं रोका जा सका? उन्होंने NSAB की बैठकें सार्वजनिक करने की मांग की है, जिससे आम जनता को भी पता चल सके कि सरकार किस दिशा में सोच रही है।
बोर्ड की भूमिका अब और अहम
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड का मूल उद्देश्य सरकार को सुरक्षा और रणनीतिक नीतियों पर सलाह देना है। हालांकि, मौजूदा हालात को देखते हुए इसकी भूमिका और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। यह बोर्ड न केवल सीमावर्ती सुरक्षा और आतंकवाद से निपटने की रणनीति तैयार करने में मदद करेगा, बल्कि साइबर हमलों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक प्रतिक्रिया की दिशा भी तय कर सकता है।
कुल मिलाकर, बदले हुए हालात में इस उच्चस्तरीय बोर्ड का पुनर्गठन भारत की रणनीतिक तैयारी का स्पष्ट संकेत है। आलोक जोशी जैसे अनुभवी अधिकारी की अगुवाई में यह बोर्ड आने वाले दिनों में राष्ट्रीय सुरक्षा के कई अहम पहलुओं पर निर्णायक भूमिका निभा सकता है।