कश्मीर में आतंकी हमले के बाद कश्मीरियों ने बढ़ाया मदद का हाथ, पेश की इंसानियत की मिसाल

घायलों की मदद करते कश्मीरी नागरिक - आतंक के बीच मानवता की जीत
कश्मीर घाटी में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद एक तरफ जहाँ दहशत और अफरा-तफरी का माहौल था, वहीं दूसरी ओर स्थानीय कश्मीरियों ने इंसानियत की एक अनोखी मिसाल पेश की। हमले के तुरंत बाद घटनास्थल के पास मौजूद कई कश्मीरी नागरिकों ने घायलों की मदद के लिए अपने जान की परवाह किए बिना आगे बढ़कर सहायता की।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमले के चंद मिनटों के भीतर स्थानीय लोग घटनास्थल पर पहुंचे और घायल यात्रियों व सुरक्षाबलों को अस्पताल पहुँचाने में मदद की। कुछ लोगों ने अपनी निजी गाड़ियाँ घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए उपलब्ध कराई, वहीं कई स्थानीय युवाओं ने रक्तदान कर घायलों के जीवन बचाने में अहम भूमिका निभाई।
“हमारे लिए इंसानियत सबसे पहले है,” श्रीनगर के एक स्थानीय निवासी फ़ैयाज़ अहमद ने मीडिया से बातचीत में कहा। उन्होंने बताया कि जैसे ही उन्हें हमले की खबर मिली, वे अपने दोस्तों के साथ घटनास्थल पर पहुँचे और घायलों की मदद शुरू कर दी।
अस्पताल प्रशासन का भी कहना है कि हमले के बाद बड़ी संख्या में स्थानीय लोग रक्तदान के लिए अस्पताल पहुंचे। श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (SKIMS) के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया, “हम हैरान थे कि कितनी जल्दी मदद के लिए लोग आगे आए। कई घायलों की जान सिर्फ समय पर इलाज और रक्तदान की वजह से बचाई जा सकी।”
कश्मीर में इस तरह का मानवीय रुख कोई पहली बार नहीं देखा गया है। इससे पहले भी प्राकृतिक आपदाओं और अन्य संकटों के समय स्थानीय लोगों ने मिलकर मदद की मिसाल पेश की है। इस बार भी कश्मीरियों की दरियादिली और जज्बा देशभर में सराहना का विषय बना हुआ है।
प्रधानमंत्री कार्यालय और कई वरिष्ठ नेताओं ने भी सोशल मीडिया पर कश्मीरियों के इस प्रयास की तारीफ की। प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा, “कश्मीर के भाइयों-बहनों द्वारा दिखाए गए साहस और करुणा को नमन। यह भारत की सच्ची भावना को दर्शाता है।”
हमले के बावजूद, घाटी में शांति और भाईचारे की भावना को बनाए रखने के लिए स्थानीय संगठनों और स्वयंसेवकों ने भी मिलकर काम किया। जगह-जगह राहत कैंप लगाए गए, घायलों के परिजनों के लिए ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था की गई।
यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि आतंकवाद का कोई धर्म या जाति नहीं होता, और जब बात इंसानियत की आती है, तो कश्मीर के लोग सबसे आगे खड़े होते हैं।