सड़क पर बिखरा प्याज, और उस पर लोटता हमारा अन्नदाता, दर्द से भरा है ये वीडियो

सड़क पर बिखरा प्याज, और उस पर लोटता हमारा अन्नदाता
विजयपुरा : भारत का अन्नदाता जब सड़क पर लोटता है, तब केवल उसकी पीड़ा ही नहीं, बल्कि हमारी व्यवस्था की विफलता भी सामने आती है। एक ऐसा ही मर्मांतक दृश्य कर्नाटक के विजयपुरा जिले में देखने को मिला, जब प्याज की बेहद कम कीमत मिलने से आहत एक किसान ने हाइवे पर बोरी पलट दी और प्याज पर लोट-लोटकर अपना विरोध जताया।
यह घटना उस समय हुई जब बसवनबागेवाड़ी मंडी में प्याज की नीलामी हो रही थी। रोनिहाल गांव से आए किसान अपनी मेहनत की उपज – प्याज – को लेकर मंडी पहुंचे थे, इस उम्मीद के साथ कि उन्हें प्रति क्विंटल 800 से 1000 रुपये तक मिल सकते हैं। लेकिन जब नीलामी शुरू हुई, तो उन्हें सिर्फ 200 रुपये प्रति क्विंटल की दर बताई गई। ये कीमत इतनी कम थी कि किसान के हाथों से जैसे जमीन ही खिसक गई हो।
गुस्सा, लाचारी और विरोध का मिला रूप
कम दाम सुनकर किसानों के सब्र का बांध टूट गया। एक किसान ने विरोध में अपनी प्याज की बोरी हाईवे पर उलट दी और सबके सामने उस पर लोटकर अपनी बेबसी और गुस्सा जाहिर किया। यह दृश्य सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं था, यह पूरे कृषि तंत्र की नाकामी पर एक कठोर सवाल भी था।
प्याज की खेती बनी घाटे का सौदा
किसान प्याज की खेती में ना केवल भारी मेहनत करता है, बल्कि खाद, पानी, बीज और श्रमिकों पर भी बड़ी लागत लगाता है। लेकिन जब बाजार में उसे लागत से भी कम कीमत मिलती है, तो यह उसके लिए आर्थिक नहीं बल्कि मानसिक और सामाजिक संकट बन जाता है। किसान का कहना है कि मंडी में नीलामी प्रक्रिया भी पारदर्शी नहीं होती और बिचौलियों की भूमिका इसमें काफी हावी रहती है।
ये कोई पहली घटना नहीं
कुछ ही दिनों पहले महाराष्ट्र में भी एक किसान का वीडियो सामने आया था, जहां वह मूंगफली की फसल मंडी में बेचने गया था। लेकिन बारिश ने उसकी फसल को बर्बाद कर दिया। अपनी आंखों के सामने फसल को बहता देख वह किसान बिलख पड़ा। अब कर्नाटक की इस घटना ने एक बार फिर हमारे देश के किसानों की पीड़ा को सामने ला दिया है।
सरकार से उम्मीदें, पर राहत नहीं
किसानों की मांग है कि सरकार प्याज समेत सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लागू करे और बाजार तंत्र में पारदर्शिता लाई जाए। साथ ही मंडी व्यवस्थाओं पर निगरानी रखी जाए ताकि किसान ठगे न जाएं। लेकिन विडंबना यह है कि आज भी देश का अन्नदाता अपनी उपज के वाजिब दाम के लिए सड़क पर उतरने को मजबूर है।
जब एक किसान अपने खून-पसीने से उपजाई फसल को सड़क पर बिखेरने लगे और उस पर लोटकर रोने लगे, तो समझिए कि हालात कितने बदतर हो चुके हैं। यह न केवल किसानों की व्यथा है, बल्कि पूरे देश की चिंता का विषय है। क्या अब भी हम आंखें मूंदकर बैठे रहेंगे या आवाज़ उठाएंगे?