Jitiya Vrat 2025: नहाय-खाय पर खाया जाता है नोनी का साग, जानें आसान रेसिपी

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Jitiya Vrat 2025

Jitiya Vrat 2025: जितिया व्रत (Jivitputrika Vrat) बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में बड़ी आस्था और परंपरा के साथ मनाया जाता है। यह व्रत माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए रखती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं और भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।

इस व्रत से एक दिन पहले नहाय-खाय का आयोजन होता है, जहां महिलाएं विशेष भोजन करती हैं। खासतौर पर नोनी का साग और मडुआ की रोटी इस दिन का मुख्य प्रसाद माना जाता है।

जितिया व्रत 2025 की तिथि

इस साल जितिया व्रत 14 सितंबर 2025, रविवार को किया जाएगा। इससे एक दिन पहले यानी 13 सितंबर को नहाय-खाय होगा।

नोनी का साग का महत्व

नोनी का साग जितिया व्रत के दौरान विशेष रूप से खाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसका सेवन शुभ माना जाता है और यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।

  • नोनी का साग पचने में हल्का और पौष्टिक होता है।

  • इसमें आयरन, कैल्शियम और एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं।

  • इसे शरीर को शुद्ध और ऊर्जावान बनाने वाला भोजन माना जाता है।

Jitiya Vrat 2025

नोनी का साग बनाने की आसान रेसिपी

सामग्री –

  • 1 गुच्छा नोनी का साग

  • 2-3 हरी मिर्च (बारीक कटी हुई)

  • 1/2 चम्मच जीरा

  • 1/4 चम्मच मेथी दाना

  • 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर

  • नमक स्वादानुसार

  • 2 सूखी लाल मिर्च

  • 2-3 चम्मच सरसों का तेल

विधि –

  1. सबसे पहले नोनी के साग को अच्छी तरह धोकर पत्तियों को अलग कर लें और बारीक काट लें।

  2. एक कड़ाही में सरसों का तेल गरम करें।

  3. तेल गरम होने पर उसमें जीरा और मेथी दाना डालकर भून लें।

  4. अब इसमें हरी मिर्च और सूखी लाल मिर्च डालें।

  5. इसके बाद कटा हुआ नोनी का साग डालें और नमक व हल्दी पाउडर मिलाएं।

  6. साग को अच्छे से चलाते हुए कड़ाही ढक दें और धीमी आंच पर पकने दें।

  7. बीच-बीच में चलाते रहें ताकि साग जले नहीं और अच्छे से गल जाए।

  8. जब पानी सूख जाए और साग नरम हो जाए तो गैस बंद कर दें।

आपका स्वादिष्ट नोनी का साग तैयार है। इसे गर्मागर्म मडुआ की रोटी के साथ परोसें।

जितिया व्रत सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि मां और बच्चे के रिश्ते का प्रतीक है। नहाय-खाय पर नोनी का साग और मडुआ की रोटी का सेवन इस व्रत का अभिन्न हिस्सा है। यह परंपरा जहां धार्मिक महत्व रखती है, वहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहद लाभकारी है।

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