Chhath Puja 2025: जानिए छठ मैया की महिमा और सूर्य देव की आराधना का महत्व
Chhath Puja 2025: छठ पूजा, जिसे छठ महापर्व भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र एवं अनुशासन-आधारित त्योहार है। यह सूर्य देव (सूर्य देव) तथा उनकी बहन/सहयोगिनी छठी मइया की आराधना के लिए समर्पित है। यह पर्व बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई प्रदेशों में विशेष श्रद्धा के साथ मनाया जाता है और अब देश-विदेश में इसकी महिमा फैली हुई है।
परंतु प्रश्न यह उठता है — छठ पूजा की उत्पत्ति कैसे हुई? और छठी मइया कौन हैं? आइए, इस पावन पर्व की कथा, पौराणिक उत्पत्ति और महत्व को विस्तार से जानें।
छठ पूजा की शुरूआत-कथा
शोध एवं पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, छठ पूजा की उत्पत्ति सत्ययुग और द्वापरयुग में मिलती है।
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एक कहानी में मुद्गल ऋषि के निर्देशानुसार, जब राम वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो उन्होंने “षष्ठी” तिथि को सूर्यजी की पूजा की थी। इसी से छठ पूजा की परंपरा बनी।
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दूसरी कथा में द्रौपदी ने महाभारत के समय जब पांडवों ने जुए में अपना राज्य खोया था, तब इस व्रत को किया एवं संकटमुक्त हुईं।
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तीसरी कथा है कर्ण की, जिन्होंने सूर्य देव के प्रति अर्घ्य देने की परंपरा स्थापित की थी।
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और एक सबसे प्राचीन कथा है प्रियव्रत नामक राजा की — जिनके पुत्र का जन्म मृत था। सौजन्य से देवी देवसेना (छठी मइया की एक रूप) ने उसे जीवित किया और तब से उनका पूजन आरम्भ हुआ।
इस तरह, छठ पूजा की उत्पत्ति पौराणिक-युगीन कथाओं से जुड़ी है और इसे Vedic (वैदिक) परंपराओं से भी जोड़ा जाता है। वैदिक ऋचाओं में सूर्य पूजा का उल्लेख है — ऋग्वेद में सूर्य देव की महिमा गाई गई है।
छठी मइया कौन हैं?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया को षष्ठी देवी के रूप में पूजा जाता है। वे ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं। छठ मैया को संतान देने वाली और परिवार में खुशहाली लाने वाली देवी के रूप में जाना जाता है।
भक्तजन मानते हैं कि छठ मैया की आराधना से संतान प्राप्ति, परिवार की समृद्धि और रोग-मुक्त जीवन का आशीर्वाद मिलता है।
छठ मैया की पूजा में सबसे अधिक महत्व पवित्रता, संयम और अनुशासन का होता है। व्रती (व्रत करने वाले) चार दिनों तक कठोर नियमों का पालन करते हैं, जिसमें जल, फल और प्रसाद के अलावा कुछ नहीं खाते। यह व्रत न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी शरीर को शुद्ध करने का प्रतीक माना जाता है।
सूर्य देव की पूजा का महत्व
सूर्य देव को ऊर्जा, प्रकाश और जीवन का स्रोत माना जाता है। छठ पूजा में उगते और अस्त होते सूर्य दोनों को अर्घ्य अर्पित किया जाता है — यह जीवन के आरंभ और अंत दोनों का प्रतीक है।
अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने का अर्थ है — पिछले दिन के सभी दोषों और पापों से मुक्ति की कामना, जबकि उगते सूर्य को अर्घ्य देना नए जीवन और सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत है।
छठ पूजा के दौरान सूर्य की किरणों का सीधा संपर्क शरीर पर होने से विटामिन D का प्राकृतिक स्रोत मिलता है, जो शरीर को ऊर्जा और रोग प्रतिरोधक क्षमता देता है।
छठ पर्व की विधि और परंपराएं
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला व्रत है, जिसमें हर दिन का अपना धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व होता है —
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पहला दिन – नहाय-खाय:
व्रती नदी या तालाब में स्नान कर शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन भोजन में केवल एक बार कद्दू-भात और दाल का सेवन किया जाता है। -
दूसरा दिन – खरना:
पूरे दिन का उपवास रखकर शाम को सूर्यास्त के बाद गुड़-चावल की खीर का प्रसाद बनाकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है और परिवार के लोग इसका प्रसाद ग्रहण करते हैं। -
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य:
शाम के समय महिलाएं घाट पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इस दौरान लोकगीत गाए जाते हैं और घाटों पर दीप जलाए जाते हैं। -
चौथा दिन – उषा अर्घ्य:
अंतिम दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसी के साथ 36 घंटे का व्रत संपन्न होता है। इसके बाद प्रसाद (थेकुआ, फल आदि) वितरित किया जाता है।
छठ पूजा की कथाएँ – विस्तार से
1. रामायण से जुड़ी कथा
रामायण की कथा अनुसार, जब राम एवं सीता अयोध्या लौटे, तो उन्होंने सूर्य देव को अर्घ्य दिया। इस अवसर पर सप्तमी तिथि को “सूर्य शष्ठी” व्रत किया गया — इसे छठ पूजा का आरंभ माना जाता है।
2. महाभारत से जुड़ी कथा
महाभारत के पांडवों ने जब लक्शगृह से भागकर अपने जीवन को रक्षा दी, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया और कई प्रकार से सूर्य देव की आराधना की। इससे उनका उद्धार हुआ और पांडवों को अपनी वापसी का मार्ग मिला।
कर्ण ने भी सूर्य-आराधना की और छठ व्रत की परंपरा को आगे बढ़ाया।
3. वैदिक एवं प्राचीन विज्ञान
कुछ शोध बताते हैं कि छठ पूजा के अनुष्ठान में आंतरिक वैज्ञानिक कारण भी हैं — जैसे नदी में स्नान करना, सूर्य की किरणों का प्रत्यक्ष अनुभव, वृहत-उपवास आदि — जो स्वास्थ्य और शुद्धि को बढ़ावा देते हैं।
पूजा की परंपरा एवं प्रसार
छठ पूजा मूलत: बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा नेपाल की तराई क्षेत्रों में प्रचलित थी। समय के साथ यह पूरे देश एवं भारतीय प्रवासी समुदायों में भी मनाई जाने लगी है।
जिस तरह दीपावली के कुछ दिन बाद यह पर्व आता है, उसने इसे सामाजिक-संस्कृतिक पहचान भी दी है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह पर्व?
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सूर्य देव को जीवन-दायी ऊर्जा के स्रोत के रूप में माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा से स्वास्थ्य-वृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
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छठी मइया के पूजन से बच्चों की सुरक्षा, परिवार की समृद्धि तथा संतान-कल्याण की कामना की जाती है।
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उपवास, स्नान, नदी-तट पर खड़े होकर अर्घ्य आदि अनुष्ठान आत्म-संयम और भक्ति को दर्शाते हैं।
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प्राकृतिक तत्वों — जल, सूर्य, वृक्ष आदि — से जुड़ी परंपरा हमें पर्यावरण-संवेदनशील बनाती है।
छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति, सूर्य और जल तत्व के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है। यह त्योहार इंसान और प्रकृति के बीच सामंजस्य का प्रतीक है।
छठ मैया की आराधना से भक्तों के जीवन में सकारात्मकता, शुद्धता और ऊर्जा का संचार होता है। यही कारण है कि छठ पर्व को “आस्था का महापर्व” कहा जाता है, जिसमें श्रद्धा, अनुशासन और पवित्रता की मिसाल देखने को मिलती है।
छठ पूजा की कथा हमें यह सिखाती है कि “जब हम आत्म-संयम, श्रद्धा और समर्पण से लक्षित हो जाते हैं, तब दिव्यता हमारे जीवन में स्वतः प्रविष्ट हो जाती है।” इसलिए इस छठ महापर्व पर — नदी तट पर खड़े होकर, सूर्य-किरणों को अर्घ्य देते हुए, हम अपनी आध्यात्मिक शक्ति को जागृत करें और छठी मइया से आशीर्वाद पाकर जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर दें।
