Bharatendu Harishchandra Birthday: आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक की जीवनी
Bharatendu Harishchandra Birthday: भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितम्बर 1850 को वाराणसी (काशी) में हुआ था और वे 6 जनवरी 1885 को यहीं पर निधन हो गए थे। उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य का ‘पितामह’ और ‘आधुनिक हिंदी का जनक’ कहा जाता है। बचपन में ही माता-पिता का निधन उनके जीवन की चुनौतियां बढ़ा गया, फिर भी उन्होने घर पर ही हिंदी, उर्दू, बंगला एवं अंग्रेज़ी भाषाओं का गहन अध्ययन किया ।
उनके पिता, गोपालचंद्र (उपनाम गिरिधरदास) एक कुशल ब्रजभाषा के कवि थे, जिनसे उन्हें साहित्यिक प्रेरणा और स्वाध्याय की नींव मिली।
शिक्षा और साहित्यिक आरंभ
15 वर्ष की उम्र में जगन्नाथपुरी की यात्रा ने उन्हें साहित्यिक पथ पर अग्रसरित किया।
महज 17–18 वर्ष की आयु में ही उन्होंने काव्य‑वचन‑सुधा नामक हिंदी साहित्यिक पत्रिका की स्थापना की, इसके बाद ‘हरिश्चंद्र पत्रिका’ और ‘बाल बोधिनी’ (स्त्री शिक्षा के उद्देश्य से) जैसी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का सम्पादन किया। ये प्रकाशन आधुनिक हिंदी साहित्य के विकास में मील के पत्थर साबित हुए।
साहित्यिक कार्य और विविधता
भारतेंदु जी ने लगभग सभी साहित्यिक विधाओं में काम किया—काव्य, नाटक, यात्रा वृत्तांत, जीवनी और संपादन, आदि।
नाटक (Drama)
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वैदिक हिंसा न भवति (1873)
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सत्य हरिश्चन्द्र (1876)
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भारत दुर्दशा (1875)
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नीलदेवी (1881)
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अंधेर नगरी, एक व्यंग्यात्मक नाटक, जो भ्रष्टता और तानाशाही व्यवस्था पर कटाक्ष करता है। इससे जुड़ा कथन “अंधेर नगरी, चौपट राजा” हिंदी में आम प्रचलन बन गया।
काव्य (Poetry)
उनकी प्रमुख काव्य कृतियों में शामिल हैं:
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भक्त सर्वज्ञ
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प्रेम मालिका (1872), प्रेम माधुरी (1875), प्रेम तरंग (1877), प्रेम प्रकल्प, प्रेम फुलवारी, प्रेम सरोवर (1883)
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अन्य रचनाएं: होली, मधुमुकुल, कृष्ण चरित्र, आदि।
यात्रा-वृत्तांत और जीवनी
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यात्रा वृत्तांत : सरयू पार की यात्रा, लखनऊ की यात्रा
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जीवनी: सूरदास, जयदेव, महात्मा मोहम्मद जैसे व्यक्तित्वों पर कटाक्षपूर्ण लेखन।
पत्रकारिता और सामाजिक दृष्टिकोण
भारतेंदु जी ने पत्रकारिता को आधुनिक हिंदी समाज में जागरूकता का साधन बनाया। उन्होंने सरकारी पक्षपात और ब्रितिश शासन की आलोचना करते हुए स्वतंत्र चेतना का प्रचार किया।
वे स्वदेशी वस्तुओं के समर्थक और उर्दू की जगह हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के समर्थक थे। उन्होंने गाय-हत्यापर रोक सहित पारंपरिक हिंदू संस्कारों को पुनर्जीवित करने का प्रयास भी किया।
उनकी सांस्कृतिक गतिविधियों में उनका ‘वैष्णव भक्ति’ पर जोर, हिंदी-उर्दू विषय में मजबूती, और मीडिया के माध्यम से सामाजिक चेतना जगाना शामिल था।
सम्मान और विरासत
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1880 में काशी के विद्वानों ने उन्हें “भारतेंदु” की उपाधि से सम्मानित किया।
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उनकी लोकप्रियता और योगदान को देखते हुए हिंदी साहित्य में इस काल को ‘भारतेंदु युग’ (1857-1900) कहा गया।
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भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार (Bhartendu Harishchandra Awards), 1983 से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा हिंदी जनसंचार में श्रेष्ठ रचनाओं को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र का प्रभाव
| क्षेत्र | योगदान |
|---|---|
| भाषा | खड़ी बोली हिंदी को प्रतिष्ठित किया, ब्रजभाषा से आधुनिक हिंदी की ओर बढ़ाया। |
| साहित्य | नाटक, कविता, यात्रा वृत्तांत, जीवनी और लेखन में उल्लेखनीय योगदान। |
| पत्रकारिता | पत्रिकाओं के माध्यम से जनता को जागरूक किया और समाज में परिवर्तन लाए। |
| सामाजिक सुधार | स्वदेशी, स्त्री शिक्षा, सांस्कृतिक पुनरुज्जीवन के पक्षधर रहे। |
| (विरासत) | ‘भारतेंदु युग’ की नींव रखी; पुरस्कार और साहित्यिक युग में अमिट छाप छोड़ी। |
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने मात्र 34 वर्ष की अल्पायु में हिंदी साहित्य को अपार समृद्धि प्रदान की—कविता, नाटक, पत्रकारिता और समाज सुधार में उन्होंने स्थायी योगदान दिया। उनकी भाषा सशक्त, सरल और जनकेंद्रित थी, जिससे साहित्य आम जन की पहुंच में आया। उनका युग भारतीय आधुनिक साहित्य का आधार बन गया।
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