PM 2.5 और द्वितीयक प्रदूषक: भारत में वायु प्रदूषण की अदृश्य चुनौती
द्वितीयक प्रदूषक पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5) प्रदूषण का एक तिहाई हिस्सा बनाते हैं।
भारत में वायु प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत PM 2.5 है, जिसमें से लगभग एक-तिहाई हिस्सा द्वितीयक प्रदूषकों से उत्पन्न होता है। विशेष रूप से अमोनियम सल्फेट जैसे यौगिक, जो SO₂ और NH₃ की प्रतिक्रियाओं से बनते हैं, इसके प्रमुख कारण हैं। प्राथमिक और द्वितीयक प्रदूषकों की प्रकृति, उत्पत्ति और स्वास्थ्य प्रभावों को समझना वायु गुणवत्ता सुधार की दिशा में एक आवश्यक कदम है।
प्राथमिक और द्वितीयक प्रदूषक क्या है ?
प्राथमिक प्रदूषक:
- ये वे प्रदूषक है जो पहचान योग्य स्रोतों से सीधे उत्सर्जित होते है तथा पर्यावरण में उसी रूप में बने रहते है जिस रूप में वे शामिल हुए थे।
- उदाहरण- ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और राख तथा वाहनों से निकलने वाले कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), पार्टिकुलेट मैटर (PM) इत्यादि ।
- प्राथमिक प्रदूषक अपने स्रोतों से सीधे वायुमंडल में छोड़े जाते है , जिससे उनके उत्पति की पहचान करना और भी आसान होता है।
द्वितीयक प्रदूषक:
- ये प्राथमिक प्रदूषकों से जुड़ी रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से वायुमंडल में बनते है न कि सीधे उत्सर्जित होते है।
- उदाहरण- जमीनी स्तर पर ओजोन (O2), जो सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक तथा द्वितीयक कार्बनिक एरोसोल (धुंध), अमोनियम सल्फेट आदि की प्रतिक्रिया से बनता है।
- द्वितीयक प्रदूषकों की विशेषताएँ:
- द्वितीयक प्रदूषक अक्सर प्राकृतिक रूप से भी बनते है और यह फोटोकैमिकल स्मॉग और PM 2.5 जैसे सूक्ष्म कणीय प्रदूषण का कारण बनते है।
- द्वितीयक प्रदूषकों को नियंत्रित करना प्राथमिक प्रदूषकों की तुलना में अत्यधिक कठिन होता है, इनका निर्माण विभिन्न रासायनिक मार्गों से होता है, जो पूर्णत: अब तक समझे नहीं गए है।
- ये निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल) में बनते है।
- इन्हें जटिल निर्माण तंत्र के कारण नियंत्रित करना मुश्किल है।
PM 2.5 (सूक्ष्म कणिकीय पदार्थ):
- जो कण निलंबित होकर वायु को प्रदूषित करते है उन्हें सूक्ष्म कणकीय प्रदूषक के रूप में परिभाषित किया जाता है। ये कण है, जिनका वायुगतिकीय व्यास 5 माइक्रोन या उससे भी कम होता है।
- स्रोत: दहन गतिविधियाँ जैसे वाहनों का धुआँ, ताप विद्युत संयंत्र, लकड़ी जलाना और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाएँ आदि ।
- यह फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश करता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती है तथा ये कणीय प्रदूषक मानव श्वसन तंत्र को भी भारी क्षति पंहुचा सकते है।
- स्वास्थ्य जोखिम: श्वसन, जलन, हृदय संबंधी रोग, सूजन और न्यूमोकोनियोसिस (धूल का सांस के साथ अंदर जाने से होने वाला फेफड़ों का रोग) और समय से पहले मृत्यु आदि अत्यधिक गंभीर रोग पैदा होते है।
- इनकी विशेषता सूजन, खांसी और फाइब्रोसिस (रेशेदार ऊतक का अत्यधिक जमाव) है।
- बचाव एवं नियंत्रण:
- सीसा सबसे खतरनाक भारी धातुओं में से एक है, जो मानव शरीर को गंभीर नुकसान पहुँचता है। इसलिए, ईंधन और अन्य उत्पादों में सीसे के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना।
- प्रशिक्षित स्वयंसेवकों और समर्थकों से युक्त एक समर्पित राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता जागरूकता कोर का निर्माण करना, जो जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चला सके।
- खाना पकाने तथा गर्म करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले बायोमास, कोयला और केरोसीन इत्यादि पर प्रतिबन्ध लगाना।
- मानवीय गतिविधियों, जैसे भूमि की सफाई, अतिक्रमण आदि के कारण वनों में आग लगने जैसी घटनाओं में कमी लाना।
- भारत सरकार द्वारा चलाए गए अभियान जैसे कि – राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान, वायु तरंग एवं मौसम विज्ञान एवं अनुसंधान प्रणाली पोर्टल आदि।
