26th july 2025
lifeofindian
हरियाली तीज पर झूले और लोकगीतों की परंपरा गांवों की आत्मा से जुड़ी हुई है। ये नारी शक्ति, प्रेम और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक हैं।
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झूला झूले रे तीजनियाँ… सावन में गूंजते हैं लोकगीतों के सुर!
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हरियाली तीज पर आम, नीम या पीपल के पेड़ पर झूले लगाए जाते हैं, महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनकर झूले पर झूलती हैं, झूला: स्त्री की स्वतंत्रता, उल्लास और सृजनशीलता का प्रतीक
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झूले पर झूलना सावन की सुंदरता से जुड़ने का माध्यम, बचपन, प्रेम और पारंपरिक जीवन का आनंद, ग्रामीण भारत में आज भी यह परंपरा जीवंत
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महिलाएं झूला झूलते समय पारंपरिक लोकगीत गाती हैं, गीतों में प्रेम, विरह, भक्ति और मौसम की बात होती है, प्रमुख गीत: “झूला झूले रे तीजनियाँ, सावन आयो रे…”
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पार्वती के शिव से मिलन की कथाएं, मायके जाने की इच्छा, सखियों के संग समय बिताने की खुशी, गीतों में सामाजिक-सांस्कृतिक बंधनों की झलक
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महिलाएं झुंड में बैठकर एक साथ गाती हैं, ढोलक, मंजीरा, और हाथ की तालों से सजता है संगीत, यह एक सामाजिक जुड़ाव और मानसिक शांति का जरिया
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आधुनिक जीवनशैली में भी इन परंपराओं को संजोएं, झूले और लोकगीतों से जुड़ें – यह आपकी संस्कृति है, बच्चों को भी इन परंपराओं से परिचित कराएं
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Teej के झूले और लोकगीत – सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि भावनाओं, जुड़ाव और नारी चेतना का उत्सव हैं। क्या आपने कभी झूला झूला है तीज पर? कौन सा लोकगीत पसंद है आपको?
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