वक्फ संशोधन अधिनियम 2025: सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक वैधता पर अहम सुनवाई, केंद्र से मांगा जवाब

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 72 याचिकाओं पर सुनवाई हुई। प्रधान न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने दो प्रमुख मुद्दों पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा। कोर्ट ने विशेष रूप से ‘वक्फ बाय यूजर’ की वैधता पर केंद्र की स्थिति स्पष्ट करने को कहा। अगली सुनवाई गुरुवार को तय की गई है।
अदालत की प्रमुख टिप्पणियाँ:
- CJI ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि उपयोगकर्ता द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को फिलहाल अधिसूचित नहीं किया जाएगा।
- पदेन सदस्यों की नियुक्ति धर्म की परवाह किए बिना हो सकती है, लेकिन अन्य सदस्य मुस्लिम ही होने चाहिए।
कपिल सिब्बल की दलीलें:
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपने धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है।
उन्होंने कहा:
- “सरकार कैसे तय कर सकती है कि वक्फ केवल वे बना सकते हैं जो 5 वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हों?”
- अधिनियम की धारा 3(सी) के तहत सरकारी संपत्तियों को वक्फ नहीं माना जाएगा, जो पहले से घोषित थीं।
अन्य वरिष्ठ वकीलों की राय:
- राजीव धवन: यह कानून इस्लाम धर्म की आंतरिक संरचना के खिलाफ है।
- अभिषेक मनु सिंघवी: 8 लाख वक्फ संपत्तियों में से 4 लाख वक्फ बाय यूजर हैं। संशोधन से इन पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
- सी. यू. सिंह: धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के बीच अंतर को स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
- हुजेफा अहमदी: ‘इस्लाम का पालन’ आवश्यक धार्मिक अभ्यास है या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है, जिससे मौलिक अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के तीखे सवाल:
CJI ने केंद्र से पूछा कि ‘वक्फ बाय यूजर’ को क्यों हटाया गया, जबकि कई ऐतिहासिक मस्जिदें इसी आधार पर वजूद में आईं। जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पंजीकरण की आवश्यकता बताई, तो CJI ने पूछा, “अगर सरकार सभी जमीनों को सरकारी घोषित कर दे, तो क्या होगा?”
राम जन्मभूमि पर सिब्बल की दलील:
सिब्बल ने कहा कि राम जन्मभूमि केस में उपयोगकर्ता के अधिकारों को मान्यता दी गई थी, उसी आधार पर वक्फ का भी अधिकार है। उन्होंने धारा 36 पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को खत्म कर देती है।
केंद्र सरकार की दलील:
एसजी तुषार मेहता ने कहा कि यह अधिनियम व्यापक विचार-विमर्श के बाद बनाया गया है। इसके लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने देशभर में विचार-विमर्श कर 29 लाख सुझावों पर काम किया।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- अधिवक्ता राजीव शकधर ने अनुच्छेद 31 की बहाली और 5 साल की परिवीक्षा अवधि पर आपत्ति जताई।
- AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, AIMPLB, जमीयत उलमा-ए-हिंद, DMK और कांग्रेस के इमरान प्रतापगढ़ी सहित 72 याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे हैं।
- केंद्र सरकार ने पहले ही कैविएट दायर की थी कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले उसकी बात सुनी जाए।
सुप्रीम कोर्ट इस संशोधित अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर विस्तृत विचार कर रही है। अभी तक कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं हुआ है। अगली सुनवाई में केंद्र का रुख और याचिकाकर्ताओं की दलीलों पर आगे की प्रक्रिया स्पष्ट हो सकती है।