प्रादेशिक सेना (Territorial Army): एक परिचय
प्रादेशिक सेना (Territorial Army – TA) भारत की एक स्वैच्छिक, अंशकालिक सैन्य इकाई है, जो नागरिकों को सैन्य सेवा से जोड़ती है। यह बल नियमित सेना की सहायता के लिए कार्य करता है, विशेषकर आपातकालीन परिस्थितियों में।
इतिहास और स्थापना
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स्थापना वर्ष: 9 अक्टूबर 1949
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स्थापना कर्ता: भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी
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अधिनियम: प्रादेशिक सेना अधिनियम, 1948
प्रादेशिक सेना की स्थापना का उद्देश्य था नागरिकों को सैन्य प्रशिक्षण देकर उन्हें आपातकालीन स्थितियों में देश की सेवा के लिए तैयार करना।
मुख्य उद्देश्य
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नियमित सेना को स्थैतिक कर्तव्यों से मुक्त करना।
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प्राकृतिक आपदाओं और आंतरिक संकटों के दौरान नागरिक प्रशासन की सहायता करना।
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आवश्यकतानुसार नियमित सेना के लिए अतिरिक्त इकाइयाँ प्रदान करना।
संरचना और इकाइयाँ
प्रादेशिक सेना में विभिन्न प्रकार की इकाइयाँ शामिल हैं:
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पैदल सेना बटालियन
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इंजीनियरिंग रेजिमेंट
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सिग्नल्स यूनिट
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रेलवे इंजीनियर रेजिमेंट
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इकोलॉजिकल टास्क फोर्स
भर्ती और प्रशिक्षण
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आयु सीमा: 18 से 42 वर्ष
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योग्यता: शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ भारतीय नागरिक
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प्रशिक्षण: प्रत्येक वर्ष दो महीने का सैन्य प्रशिक्षण, जिसमें हथियार संचालन, युद्ध रणनीति, और आपदा प्रबंधन शामिल हैं।
वर्तमान में चर्चा का कारण
हाल ही में, केंद्र सरकार ने भारतीय सेना प्रमुख को प्रादेशिक सेना के सभी अधिकारियों और जवानों को आवश्यकतानुसार तैनात करने की शक्तियाँ प्रदान की हैं। यह निर्णय भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और “ऑपरेशन सिंदूर” के संदर्भ में लिया गया है, जिसमें भारत ने आतंकवाद के खिलाफ सटीक सैन्य कार्रवाइयाँ की हैं।
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युद्धों में भागीदारी: 1962, 1965, 1971, और 1999 के युद्धों में सक्रिय भूमिका।
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आंतरिक सुरक्षा: उग्रवाद विरोधी अभियानों में योगदान।
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आपदा प्रबंधन: भूकंप, बाढ़, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य।
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पर्यावरण संरक्षण: इकोलॉजिकल टास्क फोर्स के माध्यम से वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण।
प्रादेशिक सेना भारत की सुरक्षा व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो नागरिकों को सैन्य सेवा से जोड़कर राष्ट्रीय सुरक्षा में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करती है। वर्तमान में, इसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है, जब देश को आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।