तहव्वुर राणा को लाने में लगे 17 साल, अब मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण पर सबकी नजरें

मेहुल चोकसी भारत वापसी

नई दिल्ली: 26/11 मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाने में भारत सरकार को करीब 17 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। अमेरिका की न्याय प्रणाली, प्रत्यर्पण की जटिल प्रक्रिया और कानूनी दांव-पेचों के चलते यह मामला इतना लंबा चला। अब जब राणा की वापसी तय हो गई है, देश की निगाहें एक और बड़े भगोड़े मेहुल चोकसी पर टिक गई हैं, जिसे भारत लाने की कोशिशें वर्षों से चल रही हैं। सवाल उठता है – क्या चोकसी का प्रत्यर्पण भी इतना ही लंबा और जटिल होगा?

तहव्वुर राणा की कहानी – 17 साल की कानूनी जंग

तहव्वुर राणा, जो एक पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है, 2008 के मुंबई हमलों में प्रमुख भूमिका निभाने के आरोप में भारत द्वारा वांछित था। अमेरिका में उसे 2009 में गिरफ्तार किया गया था। हालाँकि अमेरिका ने उसे 2011 में शिकागो हमले के मामले में दोषी ठहराया, लेकिन भारत को उसका प्रत्यर्पण नहीं मिल पाया।

अंततः भारत की कड़ी कोशिशों और सबूतों के आधार पर अमेरिकी अदालत ने 2023 में प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी। लेकिन कानूनी प्रक्रियाएं इतनी जटिल थीं कि 2024-25 तक जाकर उसकी वापसी की उम्मीद जगी है।

मेहुल चोकसी का मामला – कब आएगा भारत?

मेहुल चोकसी, जो कि पीएनबी घोटाले (करीब ₹13,500 करोड़) में मुख्य आरोपी है, 2018 में देश छोड़कर एंटीगुआ और बारबुडा भाग गया था। भारत सरकार ने इंटरपोल के जरिए उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी कराया, लेकिन चोकसी ने एंटीगुआ की नागरिकता लेकर प्रत्यर्पण से बचने की कानूनी लड़ाई शुरू कर दी।

2021 में एक बार डोमिनिका से उसकी गिरफ्तारी हुई थी, जब वह वहां अवैध तरीके से दाखिल हुआ था। भारत ने उसी समय प्रत्यर्पण की कोशिश की, लेकिन डोमिनिका की अदालत में कानूनी उलझनों और उसके स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

प्रत्यर्पण की जटिल प्रक्रिया: चोकसी बनाम राणा

मापदंड तहव्वुर राणा मेहुल चोकसी
नागरिकता कनाडा एंटीगुआ
स्थान अमेरिका एंटीगुआ/डोमिनिका
आरोप 26/11 आतंकी हमला ₹13,500 करोड़ बैंक घोटाला
प्रत्यर्पण समझौता भारत-अमेरिका समझौता भारत-एंटीगुआ के बीच समझौता नहीं
कानूनी स्थिति अमेरिकी अदालत से प्रत्यर्पण स्वीकृत एंटीगुआ की अदालत में मामला लंबित

भारत सरकार के प्रयास

भारत सरकार चोकसी के प्रत्यर्पण के लिए हर स्तर पर प्रयास कर रही है। गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और सीबीआई—तीनों ने मिलकर कूटनीतिक और कानूनी मोर्चे पर काम किया है। लेकिन एंटीगुआ की नागरिकता, वहां की अदालतों की स्वायत्तता और चोकसी की चालाक कानूनी रणनीति इस प्रक्रिया को बार-बार धीमा कर रही है।

क्या चोकसी को लाने में भी लगेंगे 17 साल?

इस सवाल का जवाब फिलहाल स्पष्ट नहीं है, लेकिन यदि कानूनी और राजनयिक स्तर पर तेजी नहीं आई, तो यह मामला वर्षों तक खिंच सकता है। तहव्वुर राणा के केस से सबक लेते हुए भारत को अब अंतरराष्ट्रीय समझौतों को सुदृढ़ करने, प्रत्यर्पण कानूनों को मजबूत करने और राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने की आवश्यकता है।

तहव्वुर राणा की भारत वापसी निश्चित रूप से एक बड़ी कूटनीतिक और कानूनी जीत है, लेकिन यह भी दर्शाता है कि न्याय पाने की राह आसान नहीं होती। मेहुल चोकसी के मामले में भी भारत को इसी प्रकार की दीर्घकालिक रणनीति अपनानी पड़ेगी। लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि चोकसी को लाने के लिए भारत को 17 साल इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

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