श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025: जानें भगवान कृष्ण की 16 दिव्य कलाएं

हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को पूर्ण पुरुषोत्तम अवतार माना गया है। ऐसा विश्वास है कि जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण रूप में अवतार लिया, तब वे सोलह कलाओं से पूर्ण (पूर्णावतार) थे। प्रत्येक कला इंसान को जीवन जीने की दिशा, भक्ति का मार्ग और धर्म का पालन करने की प्रेरणा देती है। जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर आइए जानते हैं श्रीकृष्ण की वे 16 कलाएं, जिन्होंने उन्हें जगत का पालनकर्ता और धर्म रक्षक बनाया। तो आइए जानते हैं उनके इन कला के बारे में…
भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाएं
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श्रवण कला – सबको धैर्यपूर्वक सुनने और समझने की कला।
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कीर्तन कला – भक्ति, गान और संगीत से लोगों को ईश्वर के मार्ग पर प्रेरित करना।
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स्मरण कला – दिव्य स्मरण और मन-चित्त को एकाग्र करने की शक्ति।
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पादसेवन कला – सेवा और समर्पण की भावनाओं का प्रतीक।
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अर्चन कला – उपासना और पूजा की पूर्णता को दर्शाने वाली कला।
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वन्दन कला – विनम्रता और प्रणाम करने की शक्ति।
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दास्य कला – सेवाभाव और आज्ञापालन की कला।
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सख्य कला – मित्रता, स्नेह और विश्वास का प्रतीक।
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आत्मनिवेदन कला – आत्मसमर्पण और ईश्वर पर पूर्ण विश्वास की कला।
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दान कला – त्याग, परोपकार और उदारता की शक्ति।
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धैर्य कला – धीरज, संयम और कठिन परिस्थितियों में भी स्थिर रहने की क्षमता।
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वाक्पटुता कला – मधुर वाणी और प्रभावशाली संवाद करने की कला।
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विद्या कला – ज्ञान, शिक्षा और शास्त्रों की पूर्णता।
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नेतृत्व कला – नीति, धर्म और सत्य पर आधारित नेतृत्व की क्षमता।
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रणकला (शौर्य कला) – युद्ध कौशल, पराक्रम और साहस का प्रतीक।
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लीलाकला – दिव्य क्रीड़ाएं, जिनसे जगत का कल्याण होता है।
इन 16 कलाओं के कारण भगवान श्रीकृष्ण केवल ग्वाल-बालों के प्रिय सखा ही नहीं रहे, बल्कि उन्होंने धर्म की स्थापना की, अन्याय का अंत किया और भक्तों को भक्ति व प्रेम का मार्ग दिखाया। जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण की इन कलाओं को स्मरण करना हमारे जीवन में भी नई ऊर्जा और सकारात्मकता भर देता है।