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PM Modi ने “मन की बात” में की पैठणी साड़ियों की तारीफ, जानिए इतिहास, शिल्पकला और महत्व

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम “मन की बात” में महाराष्ट्र की पारंपरिक पैठणी साड़ियों की विशेष प्रशंसा की। यह केवल एक परिधान नहीं, बल्कि भारत की प्राचीन शिल्पकला और सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत उदाहरण है, जिसकी जड़ें सातवाहन काल तक जाती हैं।

पैठणी साड़ियों का इतिहास एवं शाही संरक्षण:

• पैठणी साड़ियों की उत्पत्ति 2000 साल पहले महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास गोदावरी नदी के तट पर स्थित पैठण, छत्रपति संभाजीनगर नामक कस्बे में हुई थी।

• भारत में शिल्प और अन्य कलाएं पीढ़ी- दर-पीढ़ी ज्ञान हस्तांतरण के एक विशिष्ट पैटर्न का पालन करती है पैठनी बुनाई की कला इसी पैटर्न का पालन करती है, जिसमें कला परिवार के भीतर ही रहती है।

• पैठणी साड़ियां हथकरघा से बुनी गयी रेशमी साड़ियां होती है, जिनमें समृद्ध जरी, सोने या चांदी के धागों का कार्य किया जाता है।

• पैठणी साड़ी की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और यह भारतीय वस्त्र विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

• पारंपरिक पैठणी साड़ियाँ शुद्ध रेशम से हाथ से बनाई जाती है एवं पारंपरिक रंगों में रंगी जाती है।

• यह साड़ी भारतीय संस्कृति और कलात्मकता का एक प्रतीक है, इसका इतिहास एवं बुनाई की परंपरा सातवाहन वंश (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) से चली आ रही है। जब पैठण रेशम के निर्यात का एक प्रमुख केंद्र था, जिसका व्यापार रोम सम्राज्य तक फैला हुआ था।

• ऐतिहासिक रूप से, पैठणी साड़ियों राजघरानों और कुलीन वर्ग द्वारा पहनी जाती थीं।

• उल्लेखनीय संरक्षकों में सातवाहन, पुणे के पेशवा, हैदराबाद के निजाम और मुगल शासक शामिल थे।

सामग्री और शिल्पकला:

• पैठणी साड़ियाँ उत्तम रेशम से निर्मित और शुद्ध सोने और चांदी की जरी (धातु के धागों) से अलंकृत है।

• ये अपनी चमकदार पल्लु और आकर्षक डिजाइनों (जैसे मोर और कमल) के लिए जानी जाती है, जिनकी प्रेरणा अजंता-एलोरा की गुफाओं की कला और पौराणिक कथाओं से मिलती है।

• इनका निर्माण टेपेस्ट्री बुनाई तकनीक से किया जाता है।

• पैठणी की पहचान उसके विशिष्ट काठ और पदार से होती है, जिनमे विशिष्ट रूपांकन होते है। ये रूपांकन पैठणी की पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

• ये अपने जटिल पुष्प और मोर की आकृतियों वाले डिजाइनों के लिए प्रसिद्ध है।

भौगोलिक संकेतक (जीआई):  

• पैठणी साड़ियों को 2010 में भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग प्राप्त हुआ, जो उनकी अनूठी उत्पत्ति और शिल्प कौशल को मान्यता देता है। इसके साथ ही वस्त्रों को उनकी विशिष्टता और सांस्कृतिक महत्व प्रदान करता है।

• इसी प्रकार महाराष्ट्र की अन्य जीआई टैग प्राप्त साड़ी है-कर्वाठी काटी टसर सिल्क साड़ी, जो केवल विदर्भ क्षेत्र में हस्तनिर्मित रूप से बुनी जाती है। इन साड़ियो की डिज़ाइन में रामटेक मंदिर की वास्तुकला की प्रेरणा दिखती है।

पैठणी साड़ी सिर्फ एक कपड़ा नहीं, बल्कि भारतीय कला और शिल्प कौशल का एक अद्भुत नमूना है। आज के पैठणी बुनकर अब पैठण के मूल बुनकर परिवारों से ही नहीं सीखते बल्कि उन्हें महाराष्ट्र सरकार की पहल पर एक कार्यशाला में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।

एक और नया कदम 

प्रश्न.1 पैठणी साड़ी की शुरुआत निम्नलिखित किस काल में शुरू हुई थी ?

a) मुगलकाल

b) सातवाहन

c) कुषाण

d) कोई भी नहीं

 

प्रश्न.2 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए?

1. पैठणी साडी की हस्तकरघा के द्वारा रेशम एवं जरी से बुनाई की जाती थी ।

2. पैठणी साड़ियों को उनकी विशिष्टता एवं सांस्कृतिक महत्व के लिए 2011 में भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग प्राप्त हुआ है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है।

a) केवल 1

b) केवल 2

c) 1 और 2 दोनों

d) न तो 1 और न ही 2

 

कमेंट बॉक्स में आपके सही जवाब का इंतजार रहेगा…..

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