पितृपक्ष में कौवे भोजन न खाए तो क्या करें?

0
कौवे भोजन न करें तो क्या करें

हिंदू धर्म में हर जीव-जंतु का अपना अलग महत्व माना गया है। इन्हीं में से एक है कौवा, जिसे पितरों का प्रतीक और यमराज का दूत कहा गया है। धार्मिक ग्रंथों – गरुड़ पुराण, पद्म पुराण, महाभारत और स्कंद पुराण – सभी में कौवे का उल्लेख मिलता है। पितृपक्ष और श्राद्ध के समय जब कौवे को भोजन कराया जाता है, तो इसे पितरों की तृप्ति और आशीर्वाद से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि कौवे का भोजन करना शुभ संकेत है और अगर वह न खाए तो भी कई उपाय बताए गए हैं। आइए जानते हैं धार्मिक ग्रंथों में कौवे का महत्व, उसके पीछे की मान्यताएं और पितृपक्ष से जुड़े मिथक और उनके सच।

धार्मिक ग्रंथों में कौवे का महत्व

1. गरुड़ पुराण

गरुड़ पुराण में श्राद्ध और पितृपक्ष से जुड़े अनेक नियम बताए गए हैं। इसमें उल्लेख है कि पितर कौवे के रूप में भोजन स्वीकार करते हैं”
इसलिए श्राद्ध और तर्पण के समय कौवे को अन्न अर्पित करना आवश्यक माना गया है। यदि कौवा आकर भोजन कर लेता है, तो इसे पितरों की तृप्ति और आशीर्वाद का प्रतीक समझा जाता है।

2. पद्म पुराण

पद्म पुराण में कहा गया है कि कौवा यमराज का दूत है। वह पितृलोक और धरती लोक के बीच संदेशवाहक का कार्य करता है। इसीलिए कौवे को भोजन खिलाना सीधे पितरों तक अर्पण पहुंचाने के समान माना जाता है।

3. महाभारत (अनुशासन पर्व)

महाभारत में भी कौवे को विशेष स्थान दिया गया है। अनुशासन पर्व में भी उल्लेख मिलता है कि श्राद्ध कर्म के दौरान कौवे और ब्राह्मण को भोजन कराना पितरों की शांति और मोक्ष के लिए महत्वपूर्ण है।

4. स्कंद पुराण

स्कंद पुराण में बताया गया है कि श्राद्ध के समय कौवे, गाय, कुत्ते और ब्राह्मण को भोजन अर्पण करना चाहिए। इससे पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है और परिवार पर किसी भी प्रकार का पितृदोष नहीं रहता।

धार्मिक ग्रंथों में कौवे को पितृपक्ष का मुख्य वाहक माना गया है। इसलिए पितृपक्ष में जब हम कौवे को भोजन अर्पित करते हैं, तो यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि पितरों से आत्मिक जुड़ाव का माध्यम है।

कौवा भोजन न खाए तो क्या करें?

पितृपक्ष के समय कई बार ऐसा होता है कि कौवा अर्पित किया गया भोजन नहीं खाता। इसे लेकर लोग चिंतित हो जाते हैं और सोचते हैं कि कहीं पितर नाराज़ तो नहीं। धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं में इसके उपाय भी बताए गए हैं:

  1. धैर्य रखें और प्रतीक्षा करें
    • माना जाता है कि कभी-कभी कौवा देर से आता है। इसलिए तुरंत अशुभ मानकर चिंता करने की बजाय धैर्य से प्रतीक्षा करें।
  2. अन्य जीवों को अर्पण करें
    • यदि कौवा भोजन ग्रहण नहीं करता, तो वही भोजन गाय, कुत्ते, चींटी और जरूरतमंद व्यक्ति को अर्पित करना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि पंचबली” यानी इन जीवों को भोजन कराने से भी पितर प्रसन्न होते हैं।
  3. गायत्री मंत्र या पितृ सूक्त का जाप करें
    • भोजन अर्पण करते समय ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः” मंत्र का उच्चारण करने से अर्पण सीधे पितरों तक पहुंचता है, चाहे कौवा भोजन करे या न करे।
  4. ब्राह्मण को भोजन कराना
    • ब्राह्मण को श्रद्धा भाव से भोजन कराना और दक्षिणा देना भी कौवे के समान पितरों को तृप्त करने वाला माना जाता है।
  5. मन से श्रद्धा रखें
    • सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि श्राद्ध और तर्पण श्रद्धा और निष्ठा से किए जाते हैं। यदि भावनाएं सच्ची हों, तो पितर अवश्य प्रसन्न होते हैं, चाहे कौवा भोजन करे या न करे।

कौवे का भोजन करना शुभ संकेत है, लेकिन यदि ऐसा न हो तो भी घबराने की जरूरत नहीं है। अन्य जीवों को भोजन कराना और मंत्र जाप करना भी पितरों को तृप्त करने का समान फल देता है।

पितृपक्ष से जुड़े 5 बड़े मिथक और उनके सच

1. मिथक – पितृपक्ष में यात्रा नहीं करनी चाहिए

सच: शास्त्रों में कहीं भी यात्रा पर रोक का उल्लेख नहीं है। यात्रा करना वर्जित नहीं है, बस श्राद्ध-कर्म करने के बाद निकलना उचित माना गया है।

2. मिथक – श्राद्ध सिर्फ पुत्र ही कर सकता है

सच: यह पूरी तरह गलत है। धर्मशास्त्रों के अनुसार पुत्र, पुत्री, पत्नी या परिवार का कोई भी सदस्य श्राद्ध और तर्पण कर सकता है। गरुड़ पुराण में भी उल्लेख है कि सच्चे भाव से किया गया कर्म ही पितरों को तृप्त करता है।

3. मिथक – कौवा भोजन न करे तो श्राद्ध व्यर्थ है

सच: यह सिर्फ अंधविश्वास है। कौवे का भोजन करना शुभ संकेत है, लेकिन अगर वह न खाए तो भी भोजन अन्य जीवों को अर्पित करने और ब्राह्मण को भोजन कराने से पितर प्रसन्न होते हैं।

4. मिथक – पितृपक्ष में नए कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश नहीं करने चाहिए

सच: हां, यह सही है कि पितृपक्ष में मांगलिक कार्यों से परहेज़ करना चाहिए, क्योंकि यह काल पितरों को समर्पित है। परंतु अत्यावश्यक परिस्थितियों में पूजा-पाठ और मंत्रोच्चारण के साथ कार्य किया जा सकता है।

5. मिथक – पितर सिर्फ पिंडदान से ही तृप्त होते हैं

सच: पितरों की तृप्ति केवल पिंडदान से नहीं, बल्कि तर्पण, ब्राह्मण भोजन, दान-पुण्य, जीवों को भोजन और सच्ची श्रद्धा से भी होती है। पद्म पुराण में कहा गया है – श्रद्धया यत्कृतं कर्म तेन पितृः प्रीयन्ते” यानी श्रद्धा से किया गया हर कर्म पितरों को प्रसन्न करता है।

पितृपक्ष आडंबर नहीं, बल्कि श्रद्धा और भावना का पर्व है। मिथकों से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम सच्चे मन से अपने पूर्वजों को याद करें, उनका तर्पण करें और पुण्य कर्म करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *