फूलन देवी: ‘बैंडिट क्वीन’ से सांसद तक का संघर्षपूर्ण सफर

फूलन देवी: 'बैंडिट क्वीन' से सांसद तक का संघर्षपूर्ण सफर

फूलन देवी: 'बैंडिट क्वीन' से सांसद तक का संघर्षपूर्ण सफर

बैंडिट क्वीन : फूलन देवी, जिन्हें ‘बैंडिट क्वीन’ के नाम से जाना जाता है, भारतीय इतिहास की एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी कहानी साहस, संघर्ष और सामाजिक अन्याय के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक बन गई है। उनका जीवन एक साधारण ग्रामीण लड़की से लेकर संसद सदस्य बनने तक का सफर है, जो आज भी लोगों को प्रेरित करता है।

कौन थीं फूलन देवी?

फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के घुरा का पुरवा गांव में हुआ था। वह मल्लाह (निषाद) समुदाय से थीं, जो सामाजिक रूप से पिछड़ा माना जाता है। महज 11 साल की उम्र में उनकी शादी एक 30 वर्षीय व्यक्ति से कर दी गई, जहां उन्हें शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। इस अनुभव ने उनके भीतर अन्याय के खिलाफ लड़ने की भावना को जन्म दिया।

डकैत से ‘बैंडिट क्वीन’ बनने तक का सफर

घरेलू हिंसा और सामाजिक उत्पीड़न से त्रस्त फूलन देवी ने समाज के अन्याय के खिलाफ विद्रोह का रास्ता चुना। वह डकैतों के एक गिरोह में शामिल हो गईं, जहां उन्होंने कई अन्यायों का बदला लिया। 1981 में, उन्होंने उत्तर प्रदेश के बेहमई गांव में 20 लोगों की हत्या की, जिसे ‘बेहमई नरसंहार’ के नाम से जाना जाता है। इस घटना ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कर दिया।

समर्पण और जेल जीवन

1983 में, फूलन देवी ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समक्ष आत्मसमर्पण किया। उन्होंने कुछ शर्तों के साथ आत्मसमर्पण किया, जिसमें उन्हें और उनके गिरोह के सदस्यों को मृत्युदंड न देने और मध्य प्रदेश की जेल में रखने की मांग शामिल थी। हालांकि, उन्हें 11 साल तक जेल में रहना पड़ा, जहां उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया।

राजनीति में प्रवेश

1994 में, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उनके खिलाफ सभी आरोप हटा दिए। इसके बाद, फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी जॉइन की और 1996 में मिर्जापुर से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बनीं। उन्होंने महिलाओं और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए काम किया।

हत्या और न्याय की प्रतीक्षा

25 जुलाई 2001 को, नई दिल्ली स्थित उनके आवास के बाहर तीन नकाबपोश हमलावरों ने उन्हें गोली मार दी, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इस हत्या के पीछे शेर सिंह राणा का नाम सामने आया, जिन्होंने बाद में स्वीकार किया कि उन्होंने बेहमई नरसंहार का बदला लेने के लिए यह कदम उठाया था। 2014 में, दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

फूलन देवी की विरासत

फूलन देवी का जीवन सामाजिक अन्याय, जातिगत भेदभाव और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है। उनकी कहानी ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया। उनके जीवन पर आधारित फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ ने उनकी कहानी को और व्यापक रूप से लोगों तक पहुंचाया।

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