OPEC+ की नई रणनीति : वैश्विक ऊर्जा बाज़ार एक बार फिर करवट ले रहा है। जब दुनिया पहले से ही महंगाई, युद्ध और पर्यावरणीय अस्थिरता से जूझ रही है, ऐसे समय में OPEC+ का ताज़ा फैसला हर देश की रसोई और बजट को प्रभावित कर सकता है। यह कोई तकनीकी आंकड़ा मात्र नहीं, बल्कि आम आदमी की जेब से जुड़ा मुद्दा है।
क्या है नया फैसला?
सऊदी अरब के नेतृत्व में OPEC+ (OPEC और उसके सहयोगी देश) ने तेल उत्पादन में 411,000 बैरल प्रतिदिन (BPD) की वृद्धि का ऐलान किया है। यह लगातार तीसरा महीना है जब उत्पादन में इज़ाफा किया गया है। इस फैसले का उद्देश्य 2023 में की गई स्वैच्छिक कटौती को धीरे-धीरे वापस लेना है।

OPEC+ का यह कदम क्यों महत्वपूर्ण है?
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यह रणनीति वैश्विक मांग में सुधार की ओर इशारा कर रही है।
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उत्पादन बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में नरमी आ सकती है।
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लेकिन भारत जैसे आयात-आधारित देशों में इसका असर जटिल हो सकता है, क्योंकि तेल कीमतें सिर्फ उत्पादन से नहीं बल्कि डॉलर-रुपया विनिमय दर, टैक्सेशन और वैश्विक तनाव से भी प्रभावित होती हैं।
भारत पर असर: राहत या फिर महंगाई की मार?
भारत अपनी कुल तेल ज़रूरत का 80% से अधिक आयात करता है। ऐसे में OPEC+ की हर रणनीतिक हलचल का सीधा असर आम उपभोक्ता पर पड़ता है:
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उत्पादन बढ़ा है, इसका मतलब है कि आपूर्ति बढ़ेगी और कीमतों में स्थिरता या कमी आ सकती है।
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लेकिन यदि डॉलर महंगा होता है या सरकार टैक्स में कटौती नहीं करती, तो इसका लाभ जनता तक नहीं पहुंच पाता।
2023 की पृष्ठभूमि: क्यों की थी कटौती?
2023 में OPEC+ ने तेल की गिरती कीमतों और वैश्विक मंदी की आशंका के चलते स्वैच्छिक कटौती की थी। इससे कच्चे तेल की कीमतें स्थिर हुईं, लेकिन आयात करने वाले देशों को झटका लगा।
अब धीरे-धीरे वह कटौती हटाई जा रही है, जो बाज़ार को स्थायित्व की ओर ले जाने का संकेत देता है।
तेल बाज़ार की राजनीति: सिर्फ उत्पादन नहीं, यह ‘पावर प्ले’ भी है
तेल उत्पादन और मूल्य निर्धारण, केवल व्यापार नहीं बल्कि राजनीतिक शक्ति का भी खेल है। OPEC+ का हर निर्णय अमेरिका, रूस, चीन और भारत जैसे बड़े देशों की नीतियों और रणनीतियों को प्रभावित करता है।
जनता की उम्मीद बनाम वैश्विक फैसले
OPEC+ का यह फैसला आर्थिक दृष्टि से संतुलन बनाने की कोशिश है, लेकिन इसका सीधा प्रभाव भारत के मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग के परिवारों पर पड़ सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि भारत सरकार और तेल कंपनियां इस बढ़े हुए उत्पादन का क्या असर जनता तक पहुंचने देंगी — राहत मिलेगी या फिर जेब पर नया भार पड़ेगा?