जातिवार जनगणना 2025: ओबीसी सूची में बड़ा फेरबदल संभव, सरकार बना रही स्थायी नीति

जातिवार जनगणना 2025 से बदल सकती है ओबीसी सूची की तस्वीर

जातिवार जनगणना 2025 से बदल सकती है ओबीसी सूची की तस्वीर

नई दिल्ली: आज़ादी के बाद पहली बार होने जा रही जातिवार जनगणना अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। इस जनगणना के आधार पर केंद्र सरकार ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) सूची में व्यापक बदलाव की तैयारी कर रही है। सूत्रों के अनुसार, कई जातियां ओबीसी सूची से बाहर हो सकती हैं, जबकि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी नई जातियों को इसमें शामिल किया जा सकता है।

यह कदम केंद्र सरकार की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसके तहत जाति आधारित राजनीति की धार को कुंद करने का प्रयास किया जा रहा है। उच्चस्तरीय चर्चाओं के बाद इसे हरी झंडी दी गई है।

मोहन भागवत से चर्चा के बाद रणनीति को मिली मंज़ूरी

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बीच हुई एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद लिया गया। बताया जा रहा है कि इस बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। इस बैठक में जातिवार जनगणना को राष्ट्रीय जनगणना के साथ जोड़ने की सहमति बनी, ताकि सभी धर्मों और जातियों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति का आंकलन किया जा सके।

जातिवार गणना को हर 10 साल के जनगणना चक्र में जोड़े जाने की तैयारी

सरकारी सूत्रों का कहना है कि आगामी कैबिनेट बैठक में न केवल 2025 की जनगणना के साथ जातिवार आंकड़े इकट्ठा करने पर निर्णय लिया गया है, बल्कि इसे एक स्थायी व्यवस्था के रूप में हर दशक की जनगणना में शामिल करने पर भी विचार किया गया है। इससे हर 10 साल में देश की सभी जातियों की स्थिति का सटीक मूल्यांकन किया जा सकेगा।

ओबीसी सूची में बदलाव के लिए मिलेगा कानूनी आधार

जातिवार जनगणना से मिलने वाले ठोस आंकड़ों के आधार पर ओबीसी सूची में समायोजन की प्रक्रिया ज्यादा न्यायसंगत और वैज्ञानिक हो सकेगी। इससे उन जातियों की पहचान आसान होगी जो अब सामाजिक रूप से सक्षम हो चुकी हैं और जिन्हें ओबीसी सूची से हटाया जा सकता है। वहीं, पिछड़ी और वंचित जातियों को शामिल करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त डाटा होगा।

इस समय देश में ओबीसी के लिए आरक्षण की नीति 1931 की जनगणना पर आधारित है, जिसमें पिछड़ी जातियों की आबादी 52% मानी गई थी। 1941 की जातिवार जनगणना द्वितीय विश्व युद्ध के कारण नहीं हो सकी थी और स्वतंत्रता के बाद 1951 से अब तक कोई विस्तृत जातिवार जनगणना नहीं हुई।

पुराने आंकड़ों और सर्वेक्षणों पर उठते रहे सवाल

1991 में मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर 27% आरक्षण लागू किया गया, लेकिन तब भी अद्यतन आंकड़ों की कमी बनी रही। 2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना (SECC) कराई, लेकिन उसमें भारी गड़बड़ियों की वजह से यह रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की गई। मोदी सरकार ने भी उस डेटा को खारिज कर दिया।

अब जबकि सरकार 2025 की जनगणना के साथ-साथ जातिवार गणना को संस्थागत रूप देने जा रही है, यह भारतीय राजनीति और सामाजिक संरचना में एक बड़ा बदलाव लाने वाला कदम माना जा रहा है।

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