निठारी कांड क्या है? सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्यों उठे न्याय पर सवाल
भारत के अपराध इतिहास में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिन्होंने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। उन्हीं में से एक है नोएडा का बहुचर्चित निठारी कांड। दिसंबर 2006 में सामने आए इस मामले ने न केवल पुलिस और सीबीआई की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था की कमजोरियों को भी उजागर कर दिया।
हाल ही में यह मामला फिर से चर्चा में है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मोनिंदर सिंह पंधेर और सुरेंद्र कोली को साक्ष्य के अभाव में राहत दे दी है। पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 मामलों में दोनों को बरी कर दिया था। इस फैसले के बाद पीड़ित परिवारों के मन में न्याय को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
निठारी कांड क्या है?
निठारी कांड दिसंबर 2006 में उत्तर प्रदेश के नोएडा के निठारी गांव से जुड़ा है। इस गांव के पास स्थित डी-5 कोठी के पीछे के नाले से 19 बच्चों के कंकाल और मानव अवशेष बरामद हुए।
पुलिस जांच में यह मामला बेहद सनसनीखेज साबित हुआ क्योंकि मृत बच्चों की गुमशुदगी के मामलों में लापरवाही बरती गई थी।
मुख्य पात्र
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मोनिंदर सिंह पंधेर – एक व्यापारी और कोठी के मालिक
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सुरेंद्र कोली – पंधेर का घरेलू नौकर
पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर दावा किया कि कोली बच्चों को अगवा कर हत्या करता था और पंधेर को इसकी जानकारी थी। बाद में हत्या, रेप और मानव अंगों की तस्करी जैसे गंभीर आरोप लगाए गए।
घटना की शुरुआत कैसे हुई?
2005 से निठारी गांव के कई बच्चे अचानक लापता हो रहे थे। परिवार पुलिस के पास बार-बार शिकायत लेकर गए, लेकिन पुलिस ने इन्हें घर से भाग जाने के मामले मानकर गंभीरता से नहीं लिया।
दिसंबर 2006 में जब एक बच्ची की तलाश में परिजन पंधेर की कोठी के पास गए तो उन्हें वहां से संदिग्ध सामान मिला। पुलिस ने जब इलाके की खुदाई कराई तो नाले से 19 बच्चों के कंकाल और हड्डियां बरामद हुईं।
यह खुलासा होते ही पूरा देश दहशत में आ गया। मीडिया ने इसे भारत का सबसे डरावना सीरियल मर्डर केस बताया।
जांच में पुलिस की लापरवाही
प्रारंभिक जांच में पुलिस ने भारी लापरवाही दिखाई।
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बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट सही ढंग से दर्ज नहीं की गई।
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नाले से कंकाल बरामद होने के बाद भी फोरेंसिक प्रक्रिया पूरी नहीं हुई।
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आरोपितों की मेडिकल जांच समय पर नहीं कराई गई।
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घटनास्थल को सही तरह से सील नहीं किया गया, जिससे कई साक्ष्य नष्ट हो गए।
पुलिस ने केवल सुरेंद्र कोली के कबूलनामे के आधार पर केस बनाया। लेकिन कोर्ट में बाद में यह कबूलनामा भी संदेहास्पद साबित हुआ क्योंकि उस पर कोली के हस्ताक्षर नहीं मिले।
सीबीआई जांच और खामियां
मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई ने 16 मामलों में चार्जशीट दाखिल की।
लेकिन जांच के दौरान कई बड़ी खामियां सामने आईं:
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मानव अंगों की तस्करी का कोई सबूत नहीं मिला।
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खून के धब्बे या अन्य फोरेंसिक साक्ष्य नहीं जुटाए जा सके।
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आरोपियों के कबूलनामे की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग की असली चिप कोर्ट में पेश नहीं की गई।
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गवाहों के बयान भी विरोधाभासी थे।
सीबीआई ने आरोपियों पर रेप और हत्या के आरोप लगाए, लेकिन ठोस साक्ष्य के अभाव में केस कमजोर होता गया।
निचली अदालत का फैसला
गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत ने 2009 से 2017 के बीच कई मामलों में सुरेंद्र कोली को फांसी और पंधेर को उम्रकैद की सजा सुनाई।
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कोली को 13 मामलों में दोषी ठहराया गया।
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पंधेर को भी एक मामले में सजा सुनाई गई।
लेकिन ये फैसले केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों और कबूलनामे के आधार पर दिए गए थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जांच में गंभीर खामियां पाईं और 12 मामलों में दोनों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा:
“पुलिस और सीबीआई ठोस साक्ष्य जुटाने में पूरी तरह विफल रही। केस केवल संदेह के आधार पर नहीं चलाया जा सकता।”
इस फैसले के बाद पीड़ित परिवारों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी उन्हें निराशा हाथ लगी।
सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई की नाकामी
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी, लेकिन यहां भी वह पुख्ता साक्ष्य पेश करने में असफल रही। कोर्ट ने पंधेर को पूरी तरह बरी कर दिया और कोली पर केवल एक मामला बाकी रह गया जिसमें वह उम्रकैद की सजा काट रहा है।
क्यों है अब भी चर्चा में?
निठारी कांड एक बार फिर इसलिए सुर्खियों में है क्योंकि:
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आरोपियों को कानूनी राहत मिल गई है।
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पीड़ित परिवार अब भी न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
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पुलिस और सीबीआई की जांच पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
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यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था में सुधार की जरूरत को उजागर करता है।
न्याय पर उठे सवाल
इस केस ने दिखाया कि अगर पुलिस समय रहते सही तरीके से जांच करे तो पीड़ित परिवारों को न्याय मिल सकता है। लेकिन लापरवाही और सबूतों के अभाव ने न केवल केस को कमजोर कर दिया बल्कि आरोपियों को भी कानूनी फायदा दिला दिया।
निठारी कांड केवल एक अपराध नहीं, बल्कि भारत की जांच एजेंसियों और न्याय व्यवस्था के सामने आई सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। आज भी पीड़ित परिवार न्याय की आस में हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनकी उम्मीदें लगभग खत्म हो चुकी हैं।
यह मामला हमें यह सिखाता है कि अपराध जांच में पेशेवराना रवैया और फोरेंसिक तकनीक का सही इस्तेमाल कितना जरूरी है। जब तक ऐसा नहीं होगा, ऐसे मामलों में न्याय अधूरा ही रह जाएगा।
