मधुबनी और गोंड कला के कलाकारों ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति मुर्मू से की मुलाकात

मधुबनी और गोंड कला के कलाकारों ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति मुर्मू से की मुलाकात
मधुबनी पेंटिंग:
भारत की पारंपरिक लोक कलाओं की गरिमा और गौरव उस समय और बढ़ गई जब मधुबनी और गोंड चित्रकला के चुनिंदा कलाकारों ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भेंट की। यह मुलाकात सिर्फ एक शिष्टाचार भेंट नहीं थी, बल्कि यह उन कलाओं के प्रति देश के सर्वोच्च पद की सम्मान भावना का प्रतीक थी, जो सदियों से भारत की सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखे हुए हैं। बिहार की मधुबनी पेंटिंग और मध्य प्रदेश की गोंड कला, दोनों ही अपनी जीवंतता, रंगों और धार्मिक व प्राकृतिक प्रेरणाओं के लिए जानी जाती हैं। इस ऐतिहासिक अवसर ने न सिर्फ कलाकारों के मनोबल को ऊंचा किया, बल्कि इन पारंपरिक कलाओं को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने की दिशा में एक और कदम बढ़ाया।
मधुबनी पेंटिंग, जिसे मिथिला पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है, लोक कला की एक पांरपरिक और जटिल शैली है जो भारत के बिहार के मिथिला क्षेत्र से उत्पन्न हुई है। मधुबनी चित्रकला,पारंपरिक रूप से मधुबनी शहर के आसपास के गांवों की महिलाओं द्वारा की जाती थी। यह कला नेपाल में तराई क्षेत्र के आसपास के हिस्सों तक विस्तृत है। इस कला रूप की विशेषता इसके जीवंत रंग, ज्यामितीय पैटर्न और प्राकृतिक रंगों का उपयोग है। मधुबनी पेंटिंग अक्सर हिंदू पौराणिक कथाओं, प्रकृति और दैनिक जीवन के दृश्यों को दर्शाती हैं। वे आम तौर पर मिथिला क्षेत्र के लोगों द्वारा पीढ़ियों से चली आ रही है।
उत्पत्ति एवं इतिहास:
ऐसा माना जाता है कि मधुबनी चित्रकला की उत्पत्ति रामायण काल के दौरान हुई थी,जब मिथिला के राजा ने अपने राज्य के लोगों को सीता और राम के विवाह के अवसर पर अपने घरों की दीवारों और फर्श को रंगो से चित्रित करने के लिए कहा था। ऐसा माना गया है कि ऐसा करने से देवता प्रसन्न होते है।
प्रमुख विशेषताएं:
- ये चित्र अपने आदिवासी रूपांकनों और चमकीले मिट्टी के रंगों के उपयोग के कारण लोकप्रिय है।
- प्रायः यह कला शुभ अवसरों पर मिट्टी की दीवारों या मिट्टी की जमीन पर बनाई जाती थी, इन चित्रकलाओं की विषय-वस्तु एक समान होती है जो आमतौर पर कृष्ण, राधा, दुर्गा, लक्ष्मी और शिव सहित हिंदुओं के धार्मिक रूपांकनों से प्रेरित होती है।
- इसमें अलग-अलग समय और स्थान को इंगित करने के लिए चित्रों को क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर खंडों में विभाजित किया गया है।
- इसमें भित्ति चित्र, अरिपन,और पट्टचित्र तथा लघु शैली के चित्रों की गुणवत्ता भिन्न होती है।
- इन चित्रों में आंखों के आकर्षण के साथ चेहरे को प्रदर्शित किया जाता है। पेंटिंग पूरी होने के बाद आँखों पर पेंट किया जाता है।
- कपास के ब्रश, टहनियों और उंगलियों का उपयोग करके चित्रों को बनाया जाता है,चित्रों में प्रयोग किए जाने वाले रंग पौधों और अन्य प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त प्राकृतिक अर्क से बने होते हैं। जैसे- काला रंग गाय के गोबर में कालिख मिलकर बनाया जाता है, नीला रंग नील से, सफेद रंग चावल के पाउडर से, तथा नारंगी रंग पलाश के फूलों आदि से बनाया जाता हैं।
अन्य तथ्य:
मधुबनी चित्रकला एक महत्वपूर्ण भारतीय लोक कला है जो अपने चमकीले रंगों,जटिल रेखाचित्रों और धार्मिक विषयों के लिए जानी जाती है। यह कला मिथिला क्षेत्र की संस्कृति और इतिहास का एक अभिन्न अंग है, ये एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित रही है इसलिए इसे जीआई (भौगोलिक संकेत) का दर्जा भी दिया गया है। अधिकतर महिलाओं द्वारा ही मधुबनी चित्रकला के कौशल को पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित किया गया है, किंतु आज मांग को पूरा करने के लिए पुरुष भी इसमें शामिल हो गए है। वर्तमान में आधुनिक मधुबनी चित्रकला को साड़ियों,दुपट्टा,बैग, घड़ियों आदि पर भी देखा जा सकता है।
गोंड पेंटिंग:
गोंड चित्रकला गोंड आदिवासी समुदाय की सबसे प्रसिद्ध कलाकृतियों में से एक है, जिनका प्राकृतिक निवास मध्य भारत में है। गोंड समुदाय द्वारा इस कला का प्रयोग अपनी संस्कृति को संरक्षित और संप्रेषित करने के लिए किया जाता है। गोंड जनजाति प्रकृति से अत्यधिक जुडी हुई है और यह उनके चित्रों में भी दिखाई देता है, उनमें जानवर, महुआ का पेड़, पौराणिक कहानियों, हिंदू देवता, स्थानीय देवता और लोककथाएँ आदि शामिल है।
प्रमुख चित्रकला विशेषताएं:
- गोंड चित्रकला में बिंदु, रेखाएं, घुमावदार रेखाएं और पैटर्न का प्रयोग किया जाता है, जो चित्रों को एक गतिशील और जटिल रूप देते है।
- इस चित्रकला में रेखाओं का प्रयोग इस तरह से किया जाता है कि वे स्थिर तस्वीरों को गति का आभास कराती है।
- सफेद, लाल, नीले और पीले जैसे चमकीले, ज्वलंत रंगों का प्रयोग गोंड चित्रकला की एक उल्लेखनीय विशेषता है।
- गोंड़ों की पेंटिंग डिगना घरों के फर्श और दीवारों पर बनाया जाने वाला एक पारंपरिक ज्यामितीय पैटर्न है।
- रंग बनाने के लिए, प्राकृतिक साम्रगी जैसे लकड़ी का कोयला, रंगीन मिट्टी, पौधों का रस, पत्तियां और यहां तक कि गाय के गोबर का भी प्रयोग किया जाता है।
- मंडला और आस-पास के क्षेत्रों की ये गोंड पेंटिंग हाल ही में रंगीन कलाकृतियों में बदल गयी है, जिनमें मानव, पशु और वनस्पतियों को दर्शाया गया है।
- कलाकार चित्रों को भरने के लिए अपने विशिष्ट पैटर्न और शैली का उपयोग करते है, इन शैली के हस्ताक्षरों का प्रयोग कोलाज में पूर्ण चित्र बनाने के लिए किया जाता है , जैसे बिंदु, बारीक, रेखाएं, घुमावदार रेखाएं, डैश, मछली के तराजू आदि।
जनजाति: गोंड -मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में प्रमुख आदिवासी समूह।
ऐतिहासिक उल्लेख: अकबरनामा में गढ़ कटंगा के गोंड साम्राज्य का उल्लेख मिलता है।
सांस्कृतिक विशेषताएँ: द्रविड़ जाति से संबंधित है।
- संगीत,नृत्य और कहानी सुनने के शौकीन होते है।
- गोंड जनजातियों द्वारा बनाई जाने वाली कला एक महत्वपूर्ण लोक कला है, यह कला अपनी विशिष्ट शैली, जीवंत रंगों और प्रकृति के विषयों के लिए जानी जाती है। गोंड चित्रकला गोंड जनजातियों की संस्कृति,कहानियों और परंपराओं को संरक्षित करने का एक अन्य तरीका है।
हाल ही में, गोंड चित्रकला को उसके सांस्कृतिक महत्व, पारंपरिक तथा समृद्ध परंपरा के लिए भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग ) प्रदान किया गया।
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