‘कुबेर’ बनाम ‘सितारे ज़मीन पर’: दो फिल्मों के माध्यम से समाज की दो परतों की पड़ताल

धनुष की 'कुबेर' और आमिर खान की 'सितारे ज़मीन पर' दो संवेदनशील कहानियों की टक्कर
यह हफ्ता सिनेमा प्रेमियों के लिए कुछ खास लेकर आया है।
एक ओर आमिर खान की फिल्म ‘सितारे ज़मीन पर’ है, जो डाउन सिंड्रोम से जूझते बच्चों की जिंदगी को बहुत ही कोमलता और संवेदनशीलता के साथ पेश करती है। दूसरी ओर शेखर कम्मुला निर्देशित ‘कुबेर’ है, जो एक भिखारी को नायक बनाकर समाज के आर्थिक और नैतिक ढांचे पर गहरी चोट करती है।
फिल्म की कहानी शुरू होती है बंगाल की खाड़ी के रहस्यमयी तेल भंडार की खोज से। यह लालच और सत्ता के खेल की कहानी है, जिसका संचालन कर रहा है महत्वाकांक्षी उद्योगपति नीरज मित्रा (जिम सर्भ)। नीरज इस खजाने को काले धन को सफेद करने के स्कैम में बदल देता है और इसमें शामिल करता है एक भ्रष्ट सिस्टम से टूटा हुआ सीबीआई अफसर दीपक शर्मा (नागार्जुन)। दीपक इस मिशन के लिए देश के सबसे तिरस्कृत तबके—भिखारियों—का सहारा लेता है।
वहीं इस घोटाले में फंसता है मासूम और संवेदनशील देवा (धनुष)। देवा एक भोला भाला भिखारी है, जिसे इस स्कैम के इस्तेमाल के बाद मारने की योजना बनाई जाती है। लेकिन वह बच निकलता है और रास्ते में मिलती है समीरा (रश्मिका मंदाना), जो खुद एक टूटी हुई कहानी लेकर आई है। दोनों की ये मुलाकात एक ऐसी यात्रा की शुरुआत है, जहां अंत में इंसानियत और अस्तित्व की लड़ाई है।
शेखर कम्मुला का निर्देशन काबिल-ए-तारीफ है। उन्होंने एक जटिल सामाजिक और राजनीतिक स्कैम को रोचक थ्रिलर में पिरोया है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी (निकेत बॉमिरेड्डी) और बैकग्राउंड स्कोर दर्शकों को बांधे रखते हैं। हालांकि इसकी लंबाई (3 घंटे 4 मिनट) दर्शकों की धैर्य की परीक्षा लेती है।
क्लाइमैक्स इमोशनल है, लेकिन कुछ सवालों के जवाब अधूरे लगते हैं। कुछ दृश्य दोहराव लिए हुए हैं, लेकिन फिर भी फिल्म अपने सामाजिक संदेश और सिनेमाई प्रस्तुति के लिए सराही जाती है।
- धनुष: देवा के किरदार में उन्होंने खुद को पूरी तरह झोंक दिया है। उनका अभिनय फिल्म की आत्मा है।
- नागार्जुन: एक ग्रे शेड किरदार को उन्होंने सधी हुई एक्टिंग से जीवंत किया है।
- रश्मिका मंदाना: समीरा के किरदार में उन्होंने मासूमियत और मजबूती का अच्छा मिश्रण दिखाया है।
- जिम सर्भ और दलीप ताहिल: अपने किरदारों में प्रभावशाली।
आमिर खान की ‘सितारे ज़मीन पर’ अपने सामाजिक संदेश और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक मजबूत फिल्म है। यह शिक्षा प्रणाली की खामियों, पैरेंटिंग और विशेष बच्चों के साथ व्यवहार को बहुत भावनात्मक ढंग से दर्शाती है। इस फिल्म में आमिर का अभिनय, निर्देशन और कहानी, सभी प्रशंसा के योग्य हैं।
‘कुबेर’ और ‘सितारे ज़मीन पर’ दोनों फिल्में अलग-अलग ध्रुवों पर खड़ी हैं लेकिन इनका उद्देश्य एक ही है—समाज को जागरूक करना और मानवीय संवेदनाओं को छू जाना।
यदि आप एक तेज़ रफ्तार थ्रिलर की तलाश में हैं, जो समाज के काले पक्ष पर रोशनी डाले, तो ‘कुबेर’ ज़रूर देखें। और अगर आप दिल से बनी एक भावुक कहानी देखना चाहते हैं, तो ‘सितारे ज़मीन पर’ को मिस न करें।
क्या आपने ये फिल्में देखीं? अपना अनुभव हमारे साथ ज़रूर साझा करें।