Krishna Chhathi Vrat Katha 2025: कान्हा जी की छठी की कथा, पूजन विधि, मंत्र और आरती

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Krishna Chhathi Vrat Katha 2025: जन्माष्टमी के छह दिन बाद मनाया जाने वाला पर्व श्रीकृष्ण छठी (Krishna Chhathi 2025) अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैसे किसी शिशु के जन्म के छठे दिन ‘छठी’ का संस्कार किया जाता है, उसी प्रकार जन्माष्टमी के बाद कान्हा जी की छठी भी धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन लड्डू गोपाल का विशेष श्रृंगार, स्नान और भोग अर्पण किया जाता है। साथ ही व्रत कथा का पाठ और आरती-मंत्र का जाप करने से संतान की लंबी उम्र और उत्तम स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।

कृष्ण छठी कब है? (Krishna Chhathi 2025 Date)

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इसके छह दिन बाद कान्हा जी की छठी होती है। इस वर्ष जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 को मनाई गई थी, इसलिए श्रीकृष्ण की छठी 21 अगस्त 2025 को धूमधाम से मनाई जाएगी।

कृष्ण छठी व्रत कथा (Krishna Chhathi Vrat Katha in Hindi)

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में हुआ। कंस ने भविष्यवाणी सुनकर अपनी बहन देवकी और बहनोई वासुदेव को कैद कर लिया था ताकि उनके बच्चों का वध कर सके। भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि की आधी रात को जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो आकाश में बिजली चमक रही थी और तेज बारिश हो रही थी। उसी समय देवताओं की कृपा से कारागार के पहरेदार सो गए और दरवाजे खुल गए।

वासुदेव जी नवजात श्रीकृष्ण को टोकरी में रखकर यमुना नदी पार कर गोकुल पहुंचे और नंद बाबा के घर कान्हा को सौंप आए। वहीं, कारागार में योगमाया देवी का जन्म हुआ। जब कंस ने उसे मारने का प्रयास किया तो वह आकाश में उड़ गई और बोली कि “हे कंस, तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है।”

इस भविष्यवाणी से भयभीत कंस ने अपनी दासी राक्षसी पूतना को आदेश दिया कि सभी नवजात शिशुओं को मार डाले। पूतना गोकुल पहुंची, लेकिन माता यशोदा ने अपने बालकृष्ण को छिपा लिया। उस समय कान्हा जी छह दिन के हो चुके थे और उनकी छठी अभी तक नहीं हुई थी।

कहानी के अनुसार, यशोदा जी ने चिंता में माता पार्वती से प्रार्थना की। भगवान श्रीकृष्ण ने छठे ही दिन पूतना का वध कर दिया और सभी बच्चों की रक्षा की। इसके बाद माता यशोदा ने उल्लास के साथ कान्हा जी की छठी मनाई। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि जन्माष्टमी के छह दिन बाद लड्डू गोपाल की छठी मनाई जाती है।

धार्मिक मान्यता: इस दिन छठी व्रत कथा का पाठ करने और कान्हा जी का पूजन करने से संतान को उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।

कृष्ण छठी पूजा विधि (Krishna Chhathi Puja Vidhi)

  • प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
  • लड्डू गोपाल को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल) से स्नान कराएं।
  • उन्हें नए वस्त्र, मोरपंख, बांसुरी और आभूषण पहनाएं।
  • पूजा में चंदन, केसर, धूप, दीप, फूल और तुलसीदल अर्पित करें।
  • व्रत कथा का पाठ करें और भगवान को प्रिय भोग चढ़ाएं (माखन-मिश्री, खीर, पेड़ा, कढ़ी-चावल आदि)।
  • अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें।

कृष्ण छठी मंत्र (Krishna Chhathi Mantra)

पूजन के समय इन मंत्रों का जाप शुभ माना जाता है –

“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः”

“गोपाले नमः, देवकीनंदनाय नमः”

इन मंत्रों के जप से मन शुद्ध होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है।

श्रीकृष्ण छठी आरती (Krishna Chhathi Aarti)

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला

श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली

लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक

चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।

गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग ग्वालिन संग।

अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा।

स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस।

जटा के बीच,हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद।

टेर सुन दीन दुखारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

यह आरती छठी के दिन गाने से भगवान श्रीकृष्ण शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों को संतान सुख एवं परिवार में खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं।

Krishna Chhathi 2025 का पर्व केवल धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि मातृत्व और संतान के स्वास्थ्य के लिए की जाने वाली विशेष साधना है। व्रत कथा का पाठ, मंत्रोच्चारण और आरती करने से संतान की रक्षा होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

इसलिए हर वर्ष जन्माष्टमी के छह दिन बाद, कान्हा जी की छठी बड़े उत्साह और आस्था के साथ मनाई जाती है।

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