कलादान परियोजना से पूर्वोत्तर को मिलेगा वैश्विक समुद्री संपर्क, भारत-म्यांमार कॉरिडोर 2027 तक होगा तैयार

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कलादान परियोजना से क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा मिलेगा

कलादान परियोजना : कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMTTP) भारत और म्यांमार को जोड़ने वाली एक रणनीतिक परियोजना है, जो 2027 तक पूरी होने की उम्मीद है। यह पूर्वोत्तर भारत को वैश्विक समुद्री मार्गों से जोड़ने, व्यापार और रणनीतिक पहुंच को मजबूत करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।

कलादान परियोजना से क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा मिलेगा: भारत-म्यांमार गलियारा 2027 तक उत्तर पूर्व को वैश्विक समुद्री मार्गों से जोड़ेगा।

कलादान मल्टीमॉडल परियोजना के बारे में

  • कलादान परियोजना भारत और म्यांमार के बीच एक मल्टी-मॉडल पारगमन परिवहन परियोजना है।
  • यह भारत और म्यांमार द्वारा संयुक्त रूप से भारत के पूर्वी बंदरगाहों से म्यांमार तक तथा म्यांमार के माध्यम से भारत के उत्तर-पूर्वी भाग तक माल की ढुलाई के लिए परिवहन का एक बहु-मॉडल बुनियादी ढांचा है।
  • इसका उद्देश्य समुद्र, नदी और सड़क परिवहन के संयोजन का उपयोग करके भारत के पूर्वी समुद्र तट और उसके स्थलरुद्ध पूर्वोत्तर राज्यों के बीच संपर्क को बढ़ाना है।
  • ये परियोजना कोलकाता बंदरगाह को म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह को समुद्र मार्ग से, सित्तवे को कलादान नदी के रास्ते पलेत्वा से, पलेत्वा को सड़क मार्ग से भारत और म्यांमार की सीमा से और आगे मिजोरम के लॉन्गतलाई से सड़क मार्ग से जोड़ती है।
  • यह परियोजना पूरी तरह से भारत द्वारा अपनी अनुदान सहायता योजना के तहत अंतर्देशीय जलमार्गों के साथ वित्त पोषित है।
  • कलादान मल्टी-मॉडल परियोजना 1991 में “लुक ईस्ट पॉलिसी” के तहत शुरू की गयी थी और वर्त्तमान में, केंद्र सरकार द्वारा इसे “एक्ट ईस्ट नीति” के रूप में अपनाया जा रहा है।
  • इस परियोजना को मल्टी-मॉडल परियोजना इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सड़कों, पुलों और तैरते बैराज जैसे व्यापक बुनियादी ढांचे का प्रयोग किया जाता है।
  • नोडल एजेंसी: भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI)

परियोजना के घटक

  • समुद्री मार्ग: कोलकाता-सितवे बंदरगाह (म्यांमार)- बंगाल की खाड़ी में 539 किमी
  • नदी मार्ग: सित्तवे बंदरगाह से कलादान नदी के माध्यम से म्यांमार में पलेत्वा तक – 158 किमी।
  • सड़क मार्ग: पलेत्वा से भारत-म्यांमार सीमा तक फिर जोरिनपुई (मिजोरम सीमा)-110 किमी. तक

रणनीतिक महत्व

  • यह संकीर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर जिसे “चिकन्स नेक” भी कहा जाता है, को दरकिनार करते हुए अपने पूर्वोत्तर राज्यों को एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करती है।
  • यह पूर्वोत्तर को रणनीतिक संपर्क भी प्रदान करेगा, जिससे सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर भी दबाव कम रहेगा।
  • भारत की “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” को मजबूती प्रदान करता है।
  • भू-राजनीतिक तनावों से प्रभावित भूमि मार्गों पर निर्भरता को कम करता है।
  • इससे क्षेत्र में चीन के विस्तार का मुकाबला करने में मदद मिलेगी।

आर्थिक महत्व

  • भारत के चारों ओर से स्थलरुद्ध पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग संकरे सिलीगुड़ी गलियारे से होकर जाता है, जिससे भारत बांग्लादेश के रास्ते पूर्वोत्तर राज्यों में माल पहुंचाने में भी सुविधा प्रदान करेगा।
  • व्यापार, बुनियादी ढांचे और दक्षिण-पूर्व एशिया से संपर्क को बढ़ावा देता है।
  • इस परियोजना के अंतर्गत भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तक बेहतर पहुंच प्रदान करके उनके आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • नए मार्ग से कोलकाता से मिजोरम जाने में लगने वाला समय और लागत में भी कमी हो जाएगी।
  • भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, जहां देश के हाइड्रोकार्बन भंडार का पांचवा हिस्सा मौजूद है।
  • ये म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर के साथ सीमा व्यापार को प्रोत्साहित करता है।

यह परियोजना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजना है, जो न केवल पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास में योगदान देगी, बल्कि क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और व्यापार को भी बढ़ावा देगी। इस परियोजना को दोनों देश बिना किसी और देरी के पूरा होने को लेकर बेहद आशावादी है। अगर यह परियोजना पूरी हो जाती है, तो कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट कॉरिडोर दोनों देशों के भू-आर्थिक परिदृश्य को बदल देगा और एक नए कॉरिडोर की शुरुआत करेगा जो इस क्षेत्र के समुद्री अलगाव को खत्म करेगा।

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