नई दिल्ली – भारत के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित हुआ है। न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। यह नियुक्ति भारतीय न्यायपालिका में विविधता और समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
न्यायमूर्ति गवई का परिचय
न्यायमूर्ति गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ था। उन्होंने 1985 में वकालत की शुरुआत की और 2003 में बॉम्बे हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए। 2019 में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। न्यायमूर्ति गवई ने कई महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों में भाग लिया है, जिनमें जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने, चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक ठहराने और 2016 के नोटबंदी निर्णय शामिल हैं।
इतिहासिक प्रतिनिधित्व
न्यायमूर्ति गवई भारत के पहले बौद्ध और दूसरे दलित प्रधान न्यायाधीश हैं। इससे पहले, न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन ने यह पद 2007 में संभाला था। न्यायमूर्ति गवई की नियुक्ति भारतीय न्यायपालिका में सामाजिक न्याय और समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
शपथ ग्रहण समारोह
राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह के बाद, न्यायमूर्ति गवई ने अपनी मां के चरण छूकर आशीर्वाद लिया, जो इस अवसर का एक भावनात्मक और सम्मानजनक क्षण था। इस दौरान उन्होंने संविधान की सर्वोच्चता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।
न्यायमूर्ति गवई का दृष्टिकोण
न्यायमूर्ति गवई ने हमेशा सामाजिक और राजनीतिक न्याय की आवश्यकता पर बल दिया है। उनका मानना है कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 17 जैसे प्रावधान समाज में समानता और अस्पृश्यता की समाप्ति के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने और राजनीतिक हस्तक्षेप से बचने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है।