Jhijhiya Folk Dance: भारत विविध परंपराओं और लोक कलाओं का देश है। हर प्रदेश की अपनी-अपनी संस्कृति, नृत्य और त्योहार हैं। इन्हीं में से एक है झिझिया लोकनृत्य (Jhijhiya Folk Dance), जो बिहार के मिथिला अंचल में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह नृत्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि इसमें भक्ति, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पहचान भी छिपी हुई है।
झिझिया लोकनृत्य (Jhijhiya Folk Dance) क्या है?
झिझिया लोकनृत्य बिहार और पूर्वी भारत की सांस्कृतिक धरोहर है। इसे मुख्य रूप से महिलाएं और युवतियां करती हैं। इस नृत्य में सिर पर झिझिया रखा जाता है। झिझिया एक मिट्टी, पीतल या धातु का पात्र होता है, जिसमें कई छेद होते हैं और उसके भीतर दीपक (दीया) जलता है। जब रात में महिलाएं समूह में नृत्य करती हैं तो इन झिझिया पात्रों से निकलने वाली रोशनी पूरे वातावरण को आध्यात्मिक और दिव्य बना देती है।
झिझिया लोकनृत्य (Jhijhiya Folk Dance) कब किया जाता है?
-
झिझिया नृत्य मुख्य रूप से नवरात्रि (शारदीय और चैत्र नवरात्रि दोनों) के अवसर पर किया जाता है।
-
विशेषकर अश्विन माह (सितंबर-अक्टूबर) में इसकी धूम रहती है।
-
नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक महिलाएं गांव-गांव जाकर झिझिया नृत्य करती हैं और देवी दुर्गा की आराधना करती हैं।
झिझिया नृत्य (Jhijhiya Folk Dance) क्यों प्रचलित है?
झिझिया नृत्य (Jhijhiya Folk Dance) की परंपरा केवल भक्ति तक सीमित नहीं है, इसके पीछे कई सामाजिक और धार्मिक कारण हैं:
-
देवी दुर्गा की कृपा पाने के लिए – लोकमान्यता है कि झिझिया नृत्य करने से माता दुर्गा प्रसन्न होती हैं और घर-परिवार को सुरक्षा देती हैं।
-
बुरी शक्तियों से रक्षा – प्राचीन काल में लोग मानते थे कि झिझिया नृत्य करने से गांव पर आई महामारी, बीमारियां और प्रेत-आत्माएं दूर हो जाती हैं।
-
खेती-बाड़ी से जुड़ाव – यह नृत्य अच्छी वर्षा और फसल की वृद्धि के लिए भी किया जाता था।
-
सामूहिकता का प्रतीक – इसमें पूरा गांव भाग लेता है, जिससे एकजुटता और सामुदायिक भावना मजबूत होती है।
झिझिया लोकनृत्य (Jhijhiya Folk Dance) कहां का पारंपरिक त्योहार है?
-
इसका प्रमुख केंद्र है बिहार का मिथिला अंचल (दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, सुपौल आदि)।
-
यह नृत्य पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों (जनकपुर, विराटनगर आदि) में भी प्रसिद्ध है।
-
यहां के ग्रामीण समाज में यह नृत्य धार्मिक अनुष्ठान की तरह माना जाता है।

कब से प्रचलित है?
झिझिया नृत्य (Jhijhiya Folk Dance) की परंपरा सैकड़ों वर्षों पुरानी मानी जाती है।
-
लोककथाओं के अनुसार, जब गांवों में महामारी फैलती थी तो स्त्रियां रातभर देवी दुर्गा का स्मरण करते हुए झिझिया नृत्य करती थीं।
-
धीरे-धीरे यह परंपरा त्योहार और पूजा का स्थायी हिस्सा बन गई।
-
आज भी गांवों में यह परंपरा जीवित है और मिथिला की संस्कृति का प्रतीक है।
झिझिया नृत्य (Jhijhiya Folk Dance) की धार्मिक मान्यताएं
-
झिझिया में जलते दीपक को मां दुर्गा की ज्योति माना जाता है।
-
झिझिया नृत्य करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और गांव-घर की रक्षा करती हैं।
- सिर पर जलते दीपक को लेकर नृत्य करना भक्ति, साहस और समर्पण का प्रतीक है।
-
लोकमान्यता है कि झिझिया का दीपक अंधकार (बुराई) को दूर करता है और गांव में प्रकाश (सुख-समृद्धि) लाता है।
-
इसे करने से गांव पर आने वाली विपत्ति टल जाती है और लोगों को शांति और सुख मिलता है।
-
प्राचीन समय में लोग मानते थे कि यह नृत्य महामारी और बुरी आत्माओं को दूर भगाने का उपाय है।
- यह नृत्य सामूहिकता और सामाजिक एकता का प्रतीक है, क्योंकि इसमें पूरा गांव मिलकर भाग लेता है।
झिझिया नृत्य (Jhijhiya Folk Dance) की विशेषताएं
-
महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा (साड़ी, घाघरा) पहनती हैं।
-
ढोलक, मंजीरा और लोकगीतों की धुन पर सामूहिक नृत्य होता है।
-
यह नृत्य केवल रात में किया जाता है, जिससे दीपक की रोशनी और भी मनमोहक लगती है।
- सिर पर रखा दीपक जब रात के अंधेरे में झिलमिलाता है तो दृश्य अत्यंत आकर्षक लगता है।
-
गीतों में मां दुर्गा की महिमा, लोककथाएं और सामाजिक संदेश शामिल होते हैं।
आधुनिक संदर्भ में झिझिया नृत्य (Jhijhiya Folk Dance)
आज के समय में भी झिझिया नृत्य (Jhijhiya Folk Dance) बिहार की पहचान बना हुआ है।
-
यह लोकनृत्य प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक उत्सवों का हिस्सा बन चुका है।
-
बिहार पर्यटन और सांस्कृतिक विभाग भी इसे बढ़ावा देता है।
-
विदेशों में बसे प्रवासी मैथिल समाज भी झिझिया नृत्य का आयोजन करता है।
झिझिया लोकनृत्य (Jhijhiya Folk Dance) केवल एक सांस्कृतिक परंपरा नहीं, बल्कि यह भक्ति, सामाजिक एकता और लोकसंस्कृति का अनमोल खजाना है। यह केवल एक कला नहीं, बल्कि देवी दुर्गा की आराधना और समाज की एकता का प्रतीक है। यह नृत्य हमें यह संदेश देता है कि सामूहिक भक्ति और आस्था से समाज की रक्षा हो सकती है। सदियों से यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है और बिहार और मिथिला की यह परंपरा आज भी लोगों की आस्था और संस्कृति को जोड़ने का माध्यम बनी हुई है।
वीडियो भी देखें: