जातीय जनगणना पर मोदी सरकार का ऐतिहासिक फैसला, विपक्ष ने बताया INDIA गठबंधन की जीत

जातीय जनगणना के फैसले के बाद विपक्ष ने जताई जीत की भावना, अखिलेश यादव बोले - ईमानदारी से होनी चाहिए प्रक्रिया।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में एक ऐतिहासिक और लंबे समय से प्रतीक्षित निर्णय लिया गया। केंद्र सरकार ने आगामी जनगणना के साथ जातीय जनगणना करवाने का फैसला किया है। यह फैसला राजनीतिक गलियारों में तेजी से चर्चित हो गया है। जहां एक ओर इसे सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम बताया जा रहा है, वहीं विपक्षी दलों ने इस फैसले को अपनी “राजनीतिक और सामाजिक जीत” करार दिया है।
विपक्ष ने फैसले का किया स्वागत, बताया जनदबाव की जीत
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और राजद समेत कई विपक्षी दलों ने जातीय जनगणना के इस फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह फैसला सरकार ने उनके निरंतर दबाव के कारण लिया है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस फैसले को INDIA गठबंधन की जीत बताया है।
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ ( ट्विटर) पर लिखा,
“जाति जनगणना का फ़ैसला 90% पीडीए की एकजुटता की 100% जीत है। हम सबके सम्मिलित दबाव से भाजपा सरकार मजबूरन ये निर्णय लेने को बाध्य हुई है। भाजपा सरकार को चेतावनी है कि अपनी चुनावी धांधली को जाति जनगणना से दूर रखें।”
अखिलेश यादव ने जताई जनगणना की निष्पक्षता को लेकर चिंता
हालांकि, अखिलेश यादव ने सरकार को ईमानदारी की नसीहत देते हुए कहा कि यह जनगणना चुनाव की तरह धांधली से ग्रस्त नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर यह प्रक्रिया पारदर्शिता और निष्पक्षता से नहीं हुई, तो इसका उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।
उन्होंने आगे कहा,
“एक ईमानदार जनगणना ही हर जाति को उनकी संख्या के अनुसार अधिकार दिला सकती है। यह अधिकारों के सकारात्मक लोकतांत्रिक आंदोलन का पहला चरण है और भाजपा की प्रभुत्ववादी सोच का अंत होकर रहेगा।”
बीजेपी खेमे में भी दिखा उत्साह
दिलचस्प बात यह रही कि जातीय जनगणना के फैसले का स्वागत खुद भाजपा के कई नेताओं ने भी किया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गृह मंत्री अमित शाह और अन्य केंद्रीय मंत्रियों ने इसे एक ऐतिहासिक निर्णय करार दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसके लिए धन्यवाद दिया।
सामाजिक न्याय या सियासी रणनीति?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला सिर्फ सामाजिक न्याय की दिशा में एक प्रयास नहीं बल्कि चुनावी रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। जातीय जनगणना की मांग लंबे समय से की जा रही थी, खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में। कई जानकार इसे हिंदुत्व और सामाजिक न्याय के संतुलन का नया प्रयोग भी मान रहे हैं।
जातीय जनगणना क्यों है अहम?
जातीय जनगणना से यह स्पष्ट हो सकेगा कि देश में किस जाति की आबादी कितनी है, और किस वर्ग को कितनी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। इससे आरक्षण, योजनाओं के वितरण और नीतिगत फैसलों में पारदर्शिता लाने की दिशा में मदद मिल सकती है।
जातीय जनगणना पर केंद्र सरकार का यह फैसला भारतीय राजनीति में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। जहां विपक्ष इसे अपनी जीत बता रहा है, वहीं सरकार ने इसे समावेशी विकास और सामाजिक न्याय की दिशा में कदम बताया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह फैसला जमीनी स्तर पर कितना प्रभावी साबित होता है और इसे राजनीति में ईमानदारी के साथ लागू किया जा पाता है या नहीं।