डोल का बाड़: जयपुर का आखिरी जंगल- विकास के नाम पर पर्यावरण की बलि देना, एक पाप !

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विकास के नाम पर पर्यावरण की बलि देना, एक पाप !

विकास के नाम पर पर्यावरण की बलि देना, एक पाप !

जयपुर : राजस्थान की राजधानी जयपुर का एक ऐतिहासिक और पर्यावरणीय दृष्टि से समृद्ध क्षेत्र डोल का बाड़’ जंगल अब मॉल और फिनटेक पार्क जैसे निर्माण कार्यों के कारण संकट में है। यह क्षेत्र, जो एयरपोर्ट के पास स्थित है और इस क्षेत्र को शहर का फेफड़ा भी कहा जाता है। यह जंगल लगभग 2,500 पेड़ों की बलि चढ़ने के खतरे में है — जिनमें राज्यवृक्ष खेजड़ी भी शामिल है।

कंक्रीट के जंगल के लिए हरियाली की आहुति?

इस इलाके में RIICO (रीको) द्वारा फिनटेक पार्क, यूनिटी मॉल और आवासीय परिसरों  का निर्माण प्रस्तावित है। इसके लिए करीब 100 एकड़ जमीन चिन्हित की गई है। यह इलाका कभी शहर से बाहर एक हरा-भरा गांव हुआ करता था, लेकिन अब शहरीकरण की दौड़ में इसके स्वरूप को बदलने की कोशिश की जा रही है। इसे लेकर विरोध के सुर तेज हो चुके हैं और पूछा जा रहा है कि क्या जयपुर को असल में इस ‘विकास ‘ की ज़रूरत है? क्या एक हरे एक कंक्रीट के जंगल के लिए जंगल की आहूति जरूरी है?

विरोध के सुर तेज

  • पिछले चार महीनों से स्थानीय निवासी और पर्यावरण प्रेमी इस फैसले के खिलाफ क्रमिक धरना दे रहे हैं।
  • विरोध कर रहे युवाओं का कहना है कि यह इलाका कुंज’ कहलाता है और यहां प्राकृतिक जैव विविधता का खजाना मौजूद है। उन्होंने बताया कि इस परियोजना के विरोध में पहले ही सरकार और रीको को चिट्ठियों के ज़रिए आपत्तियां और सुझाव भेजे जा चुके हैं.
  • उन्होंने कहा कि मॉल या पार्क की जगह किसी ऐसी ज़मीन पर होनी चाहिए जहां पेड़ न हों या कम हों।

वैकल्पिक प्रस्ताव:

  • इस जंगल को बायोडायवर्सिटी पार्क, नेचर ट्रेल, या क्लाइमेट म्यूजियम के रूप में विकसित किया जाए।

हालांकि, युवा कह रहे है कि मुख्यमंत्री से उनका कोई संवाद नहीं हो पाया है. प्रशासनिक तौर पर उन्हें मुख्यमंत्री से मिलने का समय नहीं दिया गया है ना ही उनकी बात सरकार तक पहुँचाई जा रही है. वो बताते हैं कि मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचाना इसलिए ज़्यादा ज़रूरी है क्योंकि ये इलाक़ा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के विधानसभा क्षेत्र में आता है.

सरकार और RIICO का पक्ष

  • RIICO का कहना है कि जमीन का अधिग्रहण 1982-84 में किया गया था और यह औद्योगिक उपयोग के लिए अधिसूचित क्षेत्र है।
  • 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी रीको के पक्ष में निर्णय दिया था।
  • 170 करोड़ रुपये का टेंडर जनवरी 2025 में जारी किया गया है।
  • रीको का दावा: “यह जमीन न तो वन भूमि है, न ही जैव विविधता क्षेत्र। पेड़ केवल खाली क्षेत्रों से हटाए जाएंगे।”

डोल का बाड़ में RIICO द्वारा अधिग्रहित भूमि पर दो महत्वाकांक्षी परियोजनाएं यूनिटी मॉल और राजस्थान मंडपम – शुरू की गई हैं. 2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने RIICO के पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे भूमि अधिग्रहण को मंजूरी मिल गई और औद्योगिक प्रगति का रास्ता साफ हो गया.

रीको का कहना है कि यह निर्माण बजट घोषणा के तहत किया जा रहा है और इसके लिए रीको ने 170 करोड़ रुपये का वैध टेंडर 17 जनवरी को जारी किया था.

तेज़ होते विरोध प्रदर्शन के बीच रीको का कहना है कि यह निर्माण बजट घोषणा के तहत किया जा रहा है और इसके लिए रीको ने 170 करोड़ रुपये का वैध टेंडर 17 जनवरी को जारी किया था. रीको का कहना है कि ये भूमि कभी भी वन, अरक्षित या जैव विविधता क्षेत्र नहीं रही है, न ही किसी पर्यावरणीय या कानूनी उल्लंघन का मामला है. यह भूमि RIICO को अधिग्रहण के बाद दी गई थी और मास्टर प्लान 2025 में आवासीय घोषित है. पेड़ केवल खाली भूमि से हटाए जाएंगे और डिज़ाइन में अधिकतम वृक्ष संरक्षित रहेंगे.

राजनीतिक स्वर

  • पिछली सरकार के समय भी इस परियोजना को नहीं रोका गया। हालाँकि तब भाजपा के कुछ नेता इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे थे
  • अब जबकि भाजपा सरकार के तहत निर्माण कार्य प्रस्तावित है, कांग्रेस नेता सचिन पायलट और अन्य विपक्षी नेता विरोध में हैं।
  • सरकार के मंत्री जोगाराम पटेल ने आश्वासन दिया कि “एक पेड़ कटेगा तो उसकी जगह 10 पेड़ लगाए जाएंगे।”
बिंदु जानकारी
स्थान डोल का बाड़, सांगानेर, जयपुर
प्रस्तावित प्रोजेक्ट यूनिटी मॉल, फिनटेक पार्क, आवासीय परिसर
पेड़ प्रभावित लगभग 2,500 (राज्यवृक्ष खेजड़ी सहित)
विरोध 4 माह से धरना, युवाओं की भागीदारी
वैकल्पिक सुझाव बायोडायवर्सिटी पार्क, नेचर ट्रेल
सरकार का पक्ष वैध अधिग्रहण, सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी, वृक्षारोपण का वादा

 क्या विकास के नाम पर पर्यावरण की बलि दी जा सकती है?

जयपुर का डोल का बाड़’ कोई साधारण ज़मीन का टुकड़ा नहीं है। यह उस शहर की आखिरी सांसें हैं, जो सीमेंट और धुएं से घुटता जा रहा है। यहां हर पेड़ एक जीवन है, हर शाखा में उम्मीद, और हर छांव में बचपन की यादें हैं। लेकिन अब इन पेड़ों को विकास के नाम पर काटा जा रहा है — क्या हम वाकई इतने संवेदनहीन हो चुके हैं?

सरकार से सवाल है — क्या फिनटेक पार्क और मॉल की चकाचौंध इतनी ज़रूरी है कि उसके लिए 2500 ज़िंदगियाँ मिटा दी जाएं? जिन पेड़ों को उगने में दशकों लगे, उन्हें कुछ मशीनों से कुछ घंटों में खत्म कर देना, ये कैसा विकास है?

जब हम कहते हैं कि “हरियाली हमारी धरोहर है”, तो क्या वो केवल भाषणों तक सीमित है? क्या मुख्यमंत्री का कर्तव्य नहीं बनता कि अपने ही विधानसभा क्षेत्र की इस जैव विविधता की रक्षा करें?

एक जंगल कटता है, तो केवल पेड़ नहीं गिरते — एक सभ्यता गिरती है, भावनाएं टूटती हैं, और भविष्य रोता है। ये जंगल हमसे हमारे बच्चों का कल छीनने की कीमत पर नहीं जाना चाहिए।
रुकिए, सोचिए, और बचाइए — इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।

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