रथ यात्रा 2025: ओडिशा के पुरी में हर वर्ष आयोजित होने वाली भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में श्रद्धा और संस्कृति का सबसे बड़ा प्रतीक बन चुकी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा हर साल अपने निवास श्रीमंदिर से निकलकर गुंडिचा मंदिर, यानी अपनी मौसी के घर क्यों जाते हैं?
मौसी के घर जाने की परंपरा का धार्मिक महत्व
पुरी की रथ यात्रा की सबसे खास बात यह है कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा अपने रथों पर सवार होकर 2.5 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं, जहां वे नौ दिनों तक ठहरते हैं। यह यात्रा सिर्फ धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि परिवार, स्नेह और भक्ति का संदेश देती है।
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गुंडिचा मंदिर को मौसी का घर क्यों कहा जाता है?
गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रानी गुंडिचा, पुरी के राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी थीं। उन्होंने भगवान जगन्नाथ की परम भक्त बनकर उनकी सेवा की थी। भगवान ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर हर साल उनके मंदिर आने का वचन दिया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि भगवान हर वर्ष अपनी मौसी के घर जाते हैं।
रथ यात्रा से पहले भगवान क्यों करते हैं विश्राम?
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का भव्य स्नान होता है, जिसे स्नान पूर्णिमा कहते हैं। इस स्नान के बाद भगवान बीमार हो जाते हैं, जिसे “अनवसर” कहते हैं और लगभग 15 दिनों तक विश्राम करते हैं। जब वे स्वस्थ होते हैं, तब रथ यात्रा शुरू होती है और वे गुंडिचा मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं।
गुंडिचा मंदिर में नौ दिन क्यों रुकते हैं भगवान?
गुंडिचा मंदिर में भगवान नौ दिन तक रुकते हैं। यह गहराते हुए पारिवारिक रिश्तों और भक्त-भगवान के मिलन का प्रतीक है। इस दौरान विशेष भोग तैयार किया जाता है, भक्त दर्शन करते हैं और तीर्थ नगरी पुरी में उत्सव का माहौल बना रहता है।
क्या है बाहुड़ा यात्रा?
नौ दिनों के बाद जब भगवान श्रीमंदिर लौटते हैं, तो उस यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है। ‘बाहुड़ा’ का अर्थ होता है “वापसी”। इस दिन भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है और भगवान के वापसी दर्शन के लिए खास इंतज़ाम किए जाते हैं। यह यात्रा भी उतनी ही भव्य होती है जितनी पहली।
रथ यात्रा: एक पर्व नहीं, आस्था का उत्सव
पुरी की रथ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक आत्मा का हिस्सा है। भगवान जगन्नाथ का अपनी मौसी के घर जाना हमें परिवार, प्रेम, समर्पण और परंपरा की अहमियत सिखाता है। यही कारण है कि यह उत्सव हर साल न सिर्फ करोड़ों भक्तों को जोड़ता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान को भी जीवित रखता है।
यदि आप इस रथ यात्रा में शामिल नहीं हो पाए, तो भी भगवान जगन्नाथ का संदेश यही है — “भक्ति में शक्ति है, और हर घर है मंदिर, जहां प्रेम और श्रद्धा हो।”