Hindi Diwas 2025: हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर हिंदी के महत्व और राष्ट्र निर्माण में उसके योगदान को याद किया जाता है। महात्मा गांधी ने कहा था – “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।” हिंदी दिवस के मौके पर हिंदी की व्यापकता और संचार की शक्ति को समझना और इसे आगे बढ़ाना बेहद ज़रूरी है।
हिंदी और भारत का विकास
आज भारत विश्व की सबसे तेजी से उभरती आर्थिकी है और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी लगातार अपनी अहमियत बढ़ा रहा है। जब किसी राष्ट्र का प्रभाव बढ़ता है, तो उसकी भाषा भी वैश्विक पहचान प्राप्त करती है। यही कारण है कि हिंदी की स्वीकार्यता आज विश्व स्तर पर तेजी से बढ़ रही है।
पहले जिन देशों में हिंदी की उपस्थिति बेहद कम थी, आज वहां भी इसकी गूंज सुनाई देने लगी है।
प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी का दबदबा
नई पीढ़ी के लिए हिंदी अब केवल मातृभाषा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और भारत-बोध का साधन बन चुकी है।
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NEET और UPSC जैसी परीक्षाओं में हिंदी माध्यम से छात्रों की संख्या बढ़ रही है।
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अंग्रेज़ी की तुलना में परीक्षार्थियों की संख्या अभी कम है, लेकिन हिंदी माध्यम के छात्रों का सफलता प्रतिशत अधिक है।
शिक्षा और तकनीकी क्षेत्र में हिंदी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत छठी कक्षा तक मातृभाषा में शिक्षा की व्यवस्था की गई है। साथ ही:
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अब MBBS और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी माध्यम से संभव है।
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IITs और IIMs में भी हिंदी प्रवेश कर चुकी है।
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विधि, वाणिज्य, प्रबंधन और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में भी हिंदी में शिक्षा दी जा रही है।
तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी का दबदबा बढ़ा है – ई-पेपर, ई-बुक्स, OTT, सिनेमा, डिजिटल प्लेटफॉर्म और इंटरनेट मीडिया में हिंदी की पहुंच लगातार बढ़ रही है।
गूगल के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में इंटरनेट पर हिंदी सामग्री में 94% वृद्धि हुई है।
65 करोड़ लोगों की पहली भाषा
हिंदी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है।
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65 करोड़ लोग इसे पहली भाषा के रूप में बोलते हैं।
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50 करोड़ लोग इसे दूसरी और तीसरी भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
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दुनियाभर में लगभग 135 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में हिंदी बोल या समझ लेते हैं।
हिंदी भारत की सांस्कृतिक एकता का मजबूत आधार बन चुकी है।
विश्व स्तर पर हिंदी का प्रभाव
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हिंदी अब भारत के बाहर भी मजबूत हो रही है।
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फीजी और UAE में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला है।
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UAE ने अदालतों में हिंदी के उपयोग की अनुमति दी है।
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संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी हिंदी भाषा में हैंडल और वेबसाइट शुरू किए हैं।
यह सब साबित करता है कि हिंदी अब सिर्फ भारत की नहीं बल्कि वैश्विक भाषा बन चुकी है।
हिंदीतर राज्यों से हिंदी की आवाज़
हिंदी की ताकत को सिर्फ हिंदीभाषी राज्यों ने ही नहीं, बल्कि बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे हिंदीतर राज्यों ने भी पहचाना।
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केशवचंद्र सेन (1875) ने पहली बार कहा कि हिंदी भविष्य की संपर्क भाषा हो सकती है।
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स्वामी दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश हिंदी में लिखा।
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महात्मा गांधी ने कहा – “हिंदी हृदय की भाषा है और स्वराज्य का प्रश्न है।”
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लोकमान्य तिलक और अन्य नेताओं ने भी हिंदी को स्वतंत्रता आंदोलन में संपर्क भाषा बनाया।
आखिरकार, 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया।
हिंदी आज सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, अस्मिता और आत्मा है। यह भारत की एकता की डोर है और विश्व मंच पर हमारी पहचान को मजबूत बना रही है।
आज जब हिंदी शिक्षा, तकनीक, इंटरनेट और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रभाव का विस्तार कर रही है, तब यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाला समय हिंदी का है।

