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Hindi Diwas 2025: अदालतों में अब भी हिंदी बेगानी, क्यों हावी है अंग्रेजी?

Hindi Diwas 2025

Hindi Diwas 2025: आज देशभर में हिंदी दिवस (14 सितंबर) मनाया जा रहा है। 76 साल पहले 1949 में हिंदी को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में भारत की राजभाषा के रूप में अपनाया था। वहीं, हरियाणा सरकार ने भी 1969 में हिंदी को अपनी राजभाषा घोषित कर दिया था। लेकिन विडंबना यह है कि आज भी जिला अदालतों और सरकारी कार्यालयों में हिंदी की जगह अंग्रेजी का ही बोलबाला है।

नया कानून लेकिन असर नहीं

हरियाणा सरकार ने अदालतों में हिंदी को लागू करने के लिए हरियाणा राजभाषा (संशोधन) कानून-2020 पारित किया था। इसका उद्देश्य था कि राज्य की सभी सिविल और क्रिमिनल अदालतों, राजस्व अदालतों, ट्रिब्यूनलों और अधीनस्थ न्यायालयों में दैनिक कामकाज हिंदी में हो।
यह संशोधन कानून 1 अप्रैल 2023 से लागू भी कर दिया गया। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि न तो स्टाफ को पर्याप्त प्रशिक्षण मिला और न ही आवश्यक अवसंरचना। परिणामस्वरूप अदालतों का कामकाज अंग्रेजी में ही चल रहा है।

एडवोकेट हेमंत कुमार का बयान

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के अधिवक्ता हेमंत कुमार के मुताबिक, वकीलों का एक वर्ग हिंदी में अदालत का कामकाज करने से सहज नहीं है और विरोध करता रहा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कानून पर कोई रोक नहीं लगाई।
साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट में इस संशोधन को चुनौती दी गई थी। सुनवाई के दौरान तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शरद बोबडे ने टिप्पणी की थी कि अदालतों में हिंदी लागू करने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

जनता की भाषा से दूरी क्यों?

देश में अधिकांश लोग अंग्रेजी में सहज नहीं हैं। इसके बावजूद अदालतों में अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसे में न्याय आम जनता के लिए जटिल और कठिन हो जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब केंद्र सरकार के नए आपराधिक कानून – भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) – तक को हिंदी नाम दिए गए हैं, तो अदालतों के दैनिक कामकाज में हिंदी को लागू करने में देरी समझ से परे है।

हिंदी दिवस पर सवाल

हरियाणा सरकार द्वारा अधिनियम पारित किए जाने के बावजूद अदालतों में हिंदी के लिए जगह बनाना अभी भी चुनौतीपूर्ण है। सवाल यह उठता है कि जब देशभर में 65 करोड़ लोगों की पहली भाषा हिंदी है, तो अदालतें और सरकारी तंत्र इसे क्यों नहीं अपनाते?
हिंदी दिवस पर यह स्थिति एक विडंबना है कि आज भी अदालतों और दफ्तरों में हिंदी “राजभाषा” होते हुए भी बेगानी बनी हुई है।

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