राजनीतिक रिश्तेदारों और अफसरों के परिवारवालों की प्राथमिकता: कब तक चलेगा ये VIP मॉडल?

नई दिल्ली: हरियाणा सरकार द्वारा हाल ही में की गई 97 न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति ने विवादों को जन्म दिया है। इनमें विकास बराला का नाम भी शामिल है, जिन पर यौन उत्पीड़न के आरोप हैं। यह नियुक्ति न केवल विकास बराला के विवादित नाम के कारण चर्चा में आई, बल्कि इसमें वीआईपी संस्कृति को प्राथमिकता देने पर भी सवाल उठे हैं। हरियाणा सरकार ने जिस तरह से इन नियुक्तियों में राजनेताओं और अफसरों के रिश्तेदारों को तरजीह दी, वह भी आलोचना का कारण बना है।
विकास बराला की नियुक्ति पर सवाल
इन नियुक्तियों में सबसे विवादास्पद नाम विकास बराला का है, जो बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुभाष बराला के बेटे हैं। विकास पर यौन उत्पीड़न के आरोप लग चुके हैं। इन आरोपों के बाद हरियाणा सरकार ने विकास बराला की सहायक महाधिवक्ता के पद पर नियुक्ति पर पुनर्विचार करने की बात की है।
वीआईपी कनेक्शन वाले 23 नियुक्तियां
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा सरकार ने 97 नियुक्तियों में से कम से कम 23 व्यक्तियों के संबंध राजनीतिक नेताओं, नौकरशाहों या न्यायाधीशों से हैं। इनमें सात सेवानिवृत्त या कार्यरत उच्च न्यायालय के जजों के रिश्तेदार, सात आईएएस-आईपीएस अधिकारियों के रिश्तेदार और सात बीजेपी के मंत्रियों या विधायकों के करीबी सहयोगी शामिल हैं। यह नियुक्तियां समाज के उच्च वर्ग के प्रभाव वाले लोगों के लिए एक और अवसर के रूप में देखी जा रही हैं।
नियुक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता
यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की सरकारी नियुक्तियों पर सवाल उठाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी इस पर चिंता व्यक्त की थी। 2016 में, कोर्ट ने इन नियुक्तियों के राजनीति से प्रभावित होने पर चेतावनी दी थी और सरकार को इन नियुक्तियों को निष्पक्ष और योग्यता के आधार पर करने की सलाह दी थी। कोर्ट ने विशेष रूप से यह कहा था कि नियुक्तियां इसलिए नहीं की जानी चाहिए कि ये कुछ लोगों के लिए राजनीतिक लाभ या तुष्टिकरण का माध्यम बनें।
कानून क्या कहता है?
हरियाणा लॉ ऑफिसर्स एंगेजमेंट एक्ट, 2016 के अनुसार, न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के लिए उम्मीदवार का चयन केवल योग्यता, मेरिट और उपयुक्तता के आधार पर किया जाना चाहिए। इसके तहत उम्मीदवारों द्वारा लड़े गए मामलों की संख्या भी मापदंड में शामिल है। सुप्रीम कोर्ट की सलाह के बाद, हरियाणा सरकार ने 2016 में यह एक्ट पारित किया था, जिसमें नियुक्तियों को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त करने की कोशिश की गई थी।
वीआईपी संस्कृति: कब तक चलेगा यह मॉडल?
हरियाणा सरकार की इन नियुक्तियों में वीआईपी रिश्तेदारों को तरजीह देना एक बार फिर से उस वीआईपी मॉडल को उजागर करता है, जिसे राज्य की राजनीति में बार-बार अपनाया जाता है। सवाल यह है कि क्या यह मॉडल लंबे समय तक चलता रहेगा या इसे बंद किया जाएगा? क्या सरकार भविष्य में नियुक्तियों को अधिक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सलाह पर गौर करेगी? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है, और इसे लेकर राजनीतिक हलकों में बहस जारी है।