गुरु पूर्णिमा 2025 : आज आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर हिन्दू धर्म में एक पावन पर्व गुरु पूर्णिमा मनाया जा रहा है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन महान महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। यह पर्व गुरु—जिसे देवताओं से भी ऊपर माना जाता है—उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर है।
गुरु का महत्व और पूजन विधि
गुरु ही अज्ञान के अंधकार से हमें ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं, जीवन में सही दिशा दिखाकर हमें आत्मिक उन्नति के पथ पर अग्रसर करते हैं। आध्यात्मिक जीवन में गुरु की भूमिका नितांत आवश्यक मानी जाती है।
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पूजा विधि:
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गुरु या उनके चित्र का पूजन, साथ में वेद व्यास व अपने इष्टदेव की आराधना।
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दीपक, धूप, चावल, फूल, चंदन, रोली, जल कलश, नैवेद्य – सभी पारंपरिक पूजन सामग्री का उपयोग।
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स्नान के बाद गंगाजल से आचमन, वात्सल्यपूर्वक संकल्प और जल चढ़ाना।
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फूल-माला अर्पित करना, दीपक-धूप जलाना तथा तिलक करना।
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गुरु वंदना, वेदव्यास अष्टकम या गुरु स्तुति का पाठ।
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प्रसाद चढ़ाने एवं ग्रहण करने के बाद गुरु को वस्त्र, पुस्तक या दक्षिणा अर्पित करें।
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अंत में क्षमायाचना करें और नमःकरते हुए “ऊँ गुरु देवाय नमः” मंत्र का जप करें।
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गुरु पूर्णिमा पर शुभ कार्य
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संत और आत्मिक गुरुओं द्वारा आयोजित सत्संग एवं भंडारे में भागीदारी।
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गुरुओं को श्रद्धा पूर्वक विद्या या धन के रूप में दक्षिणा अर्पित करना।
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श्रीमद्भगवद्गीता, गुरु-गीता या वेदव्यास अष्टकम जैसे ग्रंथों का पाठ।
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छात्रों, ब्राह्मणों, जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, छाता आदि दान करें।
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कई लोग फलाहार व्रत रखते हैं और आहार, वाणी, विचारों में संयम बनाए रखते हैं।
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आध्यात्मिक संदेश और संकल्प
गुरु पूर्णिमा आत्मिक जागृति और सकारात्मक जीवन की दिशा में नए संकल्प लेने का दिन है। यह वह अवसर है जब हम गुरु-प्रेम और विद्या-प्रेम के साथ स्वयं को धर्म, अध्ययन एवं चारित्रिक उन्नति की ओर प्रेरित करते हैं।