25 जून : ‘संविधान हत्या दिवस’ या ‘संविधान रक्षा दिवस’ — जानिए क्यों हो रही है ये सियासी जंग

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इमरजेंसी के 50 साल: BJP मना रही ‘संविधान हत्या दिवस’, सपा कर रही ‘संविधान रक्षा दिवस’

इमरजेंसी के 50 साल: BJP मना रही ‘संविधान हत्या दिवस’, सपा कर रही ‘संविधान रक्षा दिवस’

नई दिल्ली — आज से 50 साल पहले, 25 जून 1975 को देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी, जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे विवादास्पद और अंधकारमय दौर माना जाता है। इस घटना की 50वीं बरसी पर राजनीतिक हलकों में तीखी बयानबाज़ी और प्रतीकात्मक आयोजन देखने को मिल रहे हैं। एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) इसे ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मना रही है, वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) इस दिन को ‘संविधान रक्षा दिवस’ के रूप में याद कर रही है।

BJP का हमला: ‘इंदिरा ने लोकतंत्र को कुचला’

BJP ने इस दिन को संविधान और लोकतंत्र पर हुए “हमले” के रूप में चिह्नित किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने देशभर में प्रेस कॉन्फ्रेंस, सोशल मीडिया अभियान और विशेष कार्यक्रम आयोजित कर इमरजेंसी को “काले अध्याय” के रूप में याद किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक पोस्ट में लिखा,

“25 जून, 1975 को भारत में आपातकाल के रूप में तानाशाही थोपी गई थी। इस दिन को हमें लोकतंत्र की रक्षा के लिए चेतावनी के रूप में देखना चाहिए।”

गृहमंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट किया,

“इंदिरा गांधी ने सत्ता बचाने के लिए संविधान को रौंदा। लाखों लोगों को जेल में ठूंसा गया, प्रेस की आजादी छीनी गई, जनता की आवाज दबाई गई। यह दिन संविधान की हत्या का प्रतीक है।”

सपा का जवाब: ‘संविधान की रक्षा में खड़े थे विपक्षी दल’

दूसरी ओर समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दल इस दिन को “संविधान की रक्षा” के रूप में देख रहे हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने लखनऊ में संविधान की प्रति के साथ ‘संविधान रक्षा संकल्प यात्रा’ निकाली और कहा,

“जो लोग उस दौर में जेल गए, उन्होंने लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की। इमरजेंसी के दौरान विरोध करना ही असली राष्ट्रधर्म था। आज उसी भावना को दोहराने की ज़रूरत है।”

सपा प्रवक्ता ने कहा कि मौजूदा दौर में भी संवैधानिक संस्थाएं खतरे में हैं, इसलिए इमरजेंसी केवल अतीत नहीं, बल्कि वर्तमान को भी चेतावनी देती है।

राजनीतिक मायने: क्यों बन रहा है इमरजेंसी एक चुनावी मुद्दा?

2024 के लोकसभा चुनावों के बाद और 2025 में बिहार व अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में इमरजेंसी की 50वीं वर्षगांठ एक बड़ा नैरेटिव बनकर उभर रही है। BJP इसे कांग्रेस के “तानाशाही और परिवारवाद” की प्रतीक बता रही है, जबकि विपक्ष इसे “संविधान की भावना की रक्षा” का अवसर बना रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस बहस के पीछे असल मकसद आने वाले चुनावों में वैचारिक जमीन तैयार करना है — एक ओर राष्ट्रवाद और लोकतंत्र की सुरक्षा का दावा, दूसरी ओर संविधान और सामाजिक न्याय की रक्षा की बात।

इतिहास की याद: क्या हुआ था 25 जून 1975 को?

  • 25 जून, 1975 की रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर देश में आपातकाल लागू किया।

  • संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आंतरिक अशांति का हवाला दिया गया।

  • प्रेस पर सेंसरशिप, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर अंकुश — ये सब उस दौर की पहचान बन गए।

  • इस दौरान लाखों लोगों को जेल में डाला गया, जिसमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता शामिल थे।

इमरजेंसी की 50वीं वर्षगांठ न केवल इतिहास की पुनरावृत्ति है, बल्कि यह वर्तमान भारतीय राजनीति का भी प्रतिबिंब है। यह दिन हर साल एक नई बहस को जन्म देता है — क्या आज भी लोकतंत्र उतना ही सुरक्षित है जितना होना चाहिए? और क्या इमरजेंसी केवल अतीत है, या आज भी उसकी छाया हमारे लोकतंत्र पर मंडरा रही है?

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