Diwali 2025: दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश की पूजा क्यों होती है? जानिए इसका पौराणिक और आध्यात्मिक रहस्य

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Diwali 2025: देशभर में दिवाली 2025 का पर्व इस बार सोमवार, 20 अक्टूबर को बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। दीपों का यह त्योहार रोशनी, उत्सव और खुशहाली का प्रतीक है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि जब दिवाली भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है, तो इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा क्यों की जाती है? इसके पीछे एक बहुत ही गहरा धार्मिक कारण छिपा है, जो सतयुग से जुड़ा है।

दिवाली और श्रीराम की कहानी

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन की खुशी में अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर पूरी नगरी को रोशन किया — और तभी से दीपावली मनाने की परंपरा शुरू हुई। लेकिन दिवाली की जड़ें सिर्फ श्रीराम तक सीमित नहीं हैं — इसका संबंध सतयुग और महालक्ष्मी से भी है।

सतयुग और समुद्र मंथन की कथा

आचार्य रमेश शर्मा के अनुसार, “कार्तिक अमावस्या की रात महालक्ष्मी पूजा का विधान भगवान विष्णु के राम अवतार से भी पहले का है।”

सतयुग में देवताओं और असुरों के बीच युद्ध के बाद जब समुद्र मंथन हुआ, तब 14 रत्नों का प्रकट होना बताया गया — जिनमें महालक्ष्मी भी एक थीं। उसी दिन देवी लक्ष्मी का भगवान विष्णु से विवाह हुआ था।

इसी वजह से कार्तिक अमावस्या को महालक्ष्मी पूजन का दिन माना जाता है। समुद्र मंथन से ही धन्वंतरि देव अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए धनतेरस के दिन उनकी पूजा का विधान है।

दिवाली पर गणेश जी की पूजा क्यों?

माता लक्ष्मी की पूजा के साथ भगवान गणेश की पूजा का भी विशेष महत्व है।

Diwali 2025

आचार्य रमेश शर्मा बताते हैं — “लक्ष्मी का जन्म जल से हुआ, और जल का स्वभाव है लगातार बहते रहना। इसी तरह लक्ष्मी भी स्थिर नहीं रहतीं। लेकिन गणेश जी बुद्धि और विवेक के स्वामी हैं। जब बुद्धि और लक्ष्मी एक साथ होती हैं, तभी समृद्धि स्थिर होती है।”

इसलिए दिवाली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा की जाती है ताकि घर में धन के साथ बुद्धि और स्थिरता भी बनी रहे।

एक ही तिथि, दो पौराणिक घटनाएं

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार,

  • समुद्र मंथन की घटना — सतयुग में घटी थी

  • भगवान राम का अयोध्या आगमन — त्रेता युग में हुआ

संयोग से दोनों घटनाएं कार्तिक मास की अमावस्या के दिन हुईं। इसलिए इस तिथि को दिवाली, महालक्ष्मी पूजन और गणेश पूजन का सबसे शुभ दिन माना गया है।
अयोध्या में जब श्रीराम लौटे, तो नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया — और तब से हर वर्ष यह परंपरा जारी है।

आध्यात्मिक संदेश

दिवाली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि यह अंधकार पर प्रकाश की विजय, अज्ञान पर ज्ञान की जीत, और अस्थिरता में स्थिरता पाने का प्रतीक है।
माता लक्ष्मी हमें समृद्धि देती हैं, गणेश जी हमें विवेक — और यही संतुलन जीवन को पूर्ण बनाता है।

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