बिहार का पर्व चौरचन : चंद्रमा को समर्पित अद्भुत लोक परंपरा, क्यों करते हैं कलंकित चांद की पूजा

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क्यों किया जाता है चौरचन?

भारत विविधता से भरा देश है, जहाँ हर राज्य और क्षेत्र अपनी-अपनी परंपराओं और लोक उत्सवों के लिए जाना जाता है। बिहार की मिट्टी न केवल शिक्षा, साहित्य और इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की लोक आस्थाएँ भी अपनी विशिष्टता के लिए जानी जाती हैं। इन्हीं परंपरागत पर्वों में से एक है “चौरचन” जिसे लोग बड़े श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाते हैं। यह पर्व मुख्यतः चंद्रमा की पूजा को समर्पित है और भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इसे बिहार के गाँव–गाँव में खास महत्व प्राप्त है।

चौरचन क्या है?

चौरचन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘चौर’ और ‘चन’

  • ‘चौर’ का अर्थ है चतुर्थी तिथि।

  • ‘चन’ का अर्थ है चंद्रमा।

अर्थात् यह पर्व वह दिन है जब भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है। इसे कुछ जगह “चौथ चंद” या “चंद चौथ” भी कहा जाता है।

चौरचन कब होता है?

  • चौरचन पर्व हर साल भाद्रपद माह (अगस्त–सितंबर) में आता है।

  • यह दिन गणेश चतुर्थी के ठीक उसी तिथि पर होता है, परंतु इसमें पूजा का केन्द्र गणेश नहीं बल्कि चंद्रमा होता है।

  • 2025 में चौरचन पर्व 26 अगस्त 2025 (बुधवार) को मनाया जाएगा।

चौरचन क्यों किया जाता है?

चौरचन पर्व का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की पूजा कर सुख-समृद्धि, मानसिक शांति और परिवार की उन्नति की कामना करना है।

  • लोकमान्यता है कि चंद्रमा को शीतलता और शांति का प्रतीक माना जाता है।

  • जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धापूर्वक चंद्रमा की पूजा करता है, उसके जीवन से दुख–दर्द दूर होते हैं और घर में खुशहाली आती है।

  • यह पर्व विशेष रूप से महिलाएँ और बच्चे बड़ी आस्था से करते हैं।

चौरचन की मान्यता

  1. चंद्रमा का संबंध समृद्धि से
    भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा मन, भावनाओं और जीवन की शांति का प्रतिनिधित्व करता है। अतः इसकी पूजा मानसिक संतुलन और सुख-समृद्धि के लिए की जाती है।

  2. व्रत और नियम
    इस दिन घर की महिलाएँ और पुरुष चंद्रमा के दर्शन कर अन्नपूर्णा और स्वास्थ्य की कामना करते हैं।

  3. परिवारिक एकता
    यह पर्व परिवार को एक साथ जोड़ने और सामूहिक पूजा का संदेश देता है।

चौरचन कैसे किया जाता है? (पूजा विधि)

चौरचन पर्व का आयोजन बहुत ही रोचक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध होता है।

  1. सफाई और तैयारी

    • घरों की अच्छी तरह सफाई की जाती है।

    • शाम के समय छतों या आँगनों में मिट्टी का चौराहा बनाया जाता है।

  2. भोग और प्रसाद

    • इस दिन विशेष रूप से ठेकुआ (अट्टीया/खजूर जैसी मिठाई), खीर, दही-चूड़ा, लड्डू, पूड़ी और मौसमी फल बनाए जाते हैं।

    • पूजा के समय यही प्रसाद चंद्रमा को अर्पित किया जाता है।

  3. चंद्रमा की पूजा

    • सूर्यास्त के बाद चंद्रमा उदय होते ही लोग छत पर इकट्ठे होकर पूजा करते हैं।

    • मिट्टी के बर्तन में अर्घ्य दिया जाता है।

    • दूध, जल, चावल और फूल अर्पित किए जाते हैं।

  4. गीत और परंपरा

    • गाँवों में महिलाएँ चंद्रमा से जुड़े पारंपरिक गीत गाती हैं।

    • बच्चे चाँद को देखकर खिलखिलाते हैं और उसे अपना “मामा” कहकर पुकारते हैं।

  5. भोग का वितरण

    • पूजा के बाद प्रसाद घर-परिवार और पड़ोसियों में बाँटा जाता है।

    • इसे ग्रहण करने से सौभाग्य और शांति प्राप्त होती है।

चंद्रमा की पूजा ही क्यों?

चौरचन पर्व में चंद्रमा की पूजा के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कारण बताए जाते हैं।

  1. चंद्रमा मन का स्वामी
    ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा को मन और भावनाओं का स्वामी माना गया है। चंद्रमा की पूजा करने से मन स्थिर रहता है और मानसिक तनाव दूर होता है।

  2. शीतलता और जीवन शक्ति
    चंद्रमा को शीतलता और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। यह प्रकृति में संतुलन बनाए रखने वाला ग्रह है।

  3. पौराणिक मान्यता
    एक कथा के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा ने गणेश जी का उपहास किया था। इससे नाराज़ होकर गणेश जी ने उसे श्राप दिया। बाद में ब्राह्मणों और देवताओं के अनुरोध पर गणेश जी ने श्राप को शिथिल किया और कहा कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा की पूजा करने से मनुष्य पापों से मुक्त होगा और चंद्र दोष समाप्त होगा।

  4. लोक मान्यता
    लोक आस्था है कि चंद्रमा की पूजा से पारिवारिक कलह मिटती है, फसल अच्छी होती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

लोक संस्कृति में चौरचन का महत्व

  • सामाजिक उत्सव: यह पर्व गाँव-गाँव में सामूहिकता को बढ़ावा देता है।

  • परिवारिक मेल-जोल: बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएँ एक साथ पूजा-अर्चना करते हैं।

  • लोकगीत और नृत्य: पूजा के दौरान लोकगीत गाए जाते हैं, जो इस परंपरा की आत्मा हैं।

  • ग्रामीण जीवन का हिस्सा: खेती-किसानी करने वाले लोग इसे अपनी फसल और जीवन की समृद्धि से जोड़कर देखते हैं।

चौरचन और गणेश चतुर्थी का संबंध

  • गणेश चतुर्थी और चौरचन दोनों ही भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को पड़ते हैं।

  • महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में जहाँ लोग गणेश पूजा करते हैं, वहीं बिहार और उत्तर भारत के कई हिस्सों में लोग चंद्रमा की पूजा करते हैं।

  • दोनों पर्व का उद्देश्य सुख, शांति और समृद्धि की कामना करना है।

आधुनिक समय में चौरचन

आज के समय में भी बिहार और आसपास के राज्यों में यह पर्व उतनी ही श्रद्धा से मनाया जाता है।

  • गाँवों में लोग अब भी छतों पर सामूहिक पूजा करते हैं।

  • शहरों में भी परिवार इस परंपरा को निभा रहे हैं।

  • सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों पर चौरचन की तस्वीरें और लोकगीतों का आदान-प्रदान होने लगा है।

चौरचन बिहार की लोक परंपरा, सांस्कृतिक धरोहर और पारिवारिक एकता का प्रतीक पर्व है। यह हमें चंद्रमा की महत्ता और प्रकृति के साथ संतुलन बनाने का संदेश देता है। आधुनिकता के दौर में भी इस पर्व का महत्व कम नहीं हुआ, बल्कि यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है।

चंद्रमा की शीतल छवि और उसकी पूजा से जुड़ी यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि मानसिक शांति, सामाजिक सामंजस्य और परिवारिक प्रेम का अद्भुत उदाहरण भी है।

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