बिहार चुनाव 2025: सीट बंटवारे पर तेजस्वी-राहुल की मीटिंग, कांग्रेस ने मांगी जीतने वाली सीटें

नई दिल्ली/पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इसी कड़ी में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के बीच दिल्ली में सीटों के बंटवारे को लेकर एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने राजद नेता और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ मंथन किया। महागठबंधन को मजबूती देने और सीट शेयरिंग की रणनीति पर गहन चर्चा की गई।
कांग्रेस ने मांगी जीत की गारंटी वाली सीटें
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस इस बार सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि “विनिंग पोटेंशियल” के आधार पर सीटों की मांग कर रही है। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि पिछले चुनाव में कांग्रेस को ऐसी सीटें दी गईं जहाँ परंपरागत रूप से भाजपा या जदयू का प्रभाव रहा है, और राजद से कोई ग्राउंड सपोर्ट नहीं मिला।
2020 के चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, जिनमें से पार्टी महज 19 सीटें ही जीत सकी थी। जबकि 2015 में पार्टी को 41 सीटें मिली थीं और उसने 27 सीटों पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में कांग्रेस अब “लालू का गेम 30” यानी 30 असुरक्षित सीटों के पुराने फॉर्मूले को बदलना चाहती है।
लालू के बिना तेजस्वी पहली बार कर रहे हैं कांग्रेस से सीधी डील
यह पहला मौका है जब कांग्रेस और राजद के बीच सीट बंटवारे की बातचीत में लालू यादव की प्रत्यक्ष भूमिका नहीं दिख रही। तेजस्वी यादव बतौर पार्टी के शीर्ष नेता इस बार कांग्रेस के साथ फ्रंटफुट पर बातचीत कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह तेजस्वी के लिए एक बड़ी परीक्षा है, जहां उन्हें गठबंधन में संतुलन बनाए रखना होगा और कांग्रेस को भी सम्मानजनक हिस्सेदारी देनी होगी।
महागठबंधन में इस बार ज्यादा दल, खिचड़ी में बढ़ी उलझन
2020 के मुकाबले इस बार महागठबंधन में पार्टनर दलों की संख्या बढ़ गई है। वाम दलों के साथ-साथ इस बार मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी और पशुपति नाथ पारस की राष्ट्रीय लोक जनता दल के भी शामिल होने की चर्चा है। ऐसे में सीटों के बंटवारे को लेकर माथापच्ची और तनातनी की संभावना काफी बढ़ गई है।
कांग्रेस की रणनीति: सिर्फ गठबंधन नहीं, सम्मानजनक हिस्सेदारी
कांग्रेस नेताओं का मानना है कि पार्टी को केवल गठबंधन में बने रहना नहीं है, बल्कि राजनीतिक रूप से सक्रिय और प्रभावी भूमिका निभानी है। राहुल गांधी की ओर से यह साफ संकेत दिया गया है कि कांग्रेस अब ऐसी सीटों पर चुनाव लड़ेगी जहां उसकी जमीन मजबूत हो और जीत की प्रबल संभावना हो।
गठबंधन का पुराना इतिहास और कांग्रेस की गिरती स्थिति
राजद और कांग्रेस का गठबंधन करीब तीन दशक पुराना है। राबड़ी देवी की सरकार से लेकर लालू यादव के राजनीतिक सफर में कांग्रेस का साथ कई बार देखने को मिला है। लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस का वोट बैंक धीरे-धीरे भाजपा और राजद में बंटता चला गया। कांग्रेस की अपनी राजनीतिक ज़मीन लगातार कमजोर होती गई, जिसे अब वह वापस पाने की कोशिश कर रही है।
आने वाला चुनाव, अगली रणनीति
बिहार की राजनीति में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलती रही है। इस बार कांग्रेस अपनी पिछली गलती दोहराना नहीं चाहती। वहीं तेजस्वी यादव के लिए यह चुनौती होगी कि वे गठबंधन के सभी घटक दलों को साथ लेकर चलें और सीट बंटवारे में तालमेल बनाए रखें।
बिहार चुनाव की यह पटकथा अभी शुरुआती चरण में है लेकिन जो साफ है वो ये कि कांग्रेस अब सिर्फ ‘पार्टनर’ नहीं, एक ‘पावरफुल प्लेयर’ बनकर उभरना चाहती है। तेजस्वी यादव के लिए यह नेतृत्व कौशल की असली परीक्षा होगी — क्या वे गठबंधन को एकजुट रखते हुए सभी दलों को संतुष्ट कर पाएंगे?