भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, दार्शनिक, कवि और आध्यात्मिक मार्गदर्शक श्री अरबिंदो घोष न केवल भारत के स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी चेहरों में से एक थे, बल्कि उन्होंने भारतीय अध्यात्म और दर्शन को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी। 15 अगस्त, 1872 को जन्मे श्री अरबिंदो का जीवनकाल ही एक प्रेरणा है—जहाँ राष्ट्रभक्ति, क्रांतिकारी चेतना, और आध्यात्मिक खोज एक साथ कदम से कदम मिलाकर चलती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके योगदान को याद किया और इस महान विभूति के विचारों को आज के भारत के लिए भी प्रासंगिक बताया। श्री अरबिंदो का जीवन इस बात का प्रमाण है कि भारत की स्वतंत्रता केवल राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि वह एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी था, जिसकी अगुवाई उन्होंने अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से की। इस लेख में हम जानेंगे उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं, स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान, आध्यात्मिक दृष्टिकोण, साहित्यिक कृतियों और आज के समय में उनकी प्रासंगिकता के बारे में।
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा
- श्री अरबिंदो घोष जिन्हें भारत के प्रारंभिक स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में जाना जाता है तथा उन्हें औपचारिक रूप से अरबिंदो एक्रोयड घोष के नाम से भी जानते है।
- उनका जन्म 15 अगस्त, 1872 को कोलकाता में हुआ था और वे एक शिक्षित परिवार से थे।
- इनका परिवार ब्रह्म समाज से प्रभावित; पिता एक सिविल सर्जन एवं अंग्रेजी संस्कृति-प्रेमी (Anglophile) थे, जबकि उसकी माँ एक महिला अधिकार कार्यकर्ता थी।
- उनकी प्रारंभिक शिक्षा दार्जिलिंग के एक क्रिश्चियन कॉन्वेंट स्कूल में शुरू हुई तथा बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया जहाँ उन्होंने लैटिन और ग्रीक जैसी शास्त्रीय भाषाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया तथा उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों के कारण उन्हें कैम्ब्रिज के किंग्स कॉलेज में छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुई।
- वह एक दार्शनिक योगी, कवि और भारतीय राष्ट्रवादी थे, उन्होंने आध्यात्मिक विकास के माध्यम से संसार को ईश्वरीय अभिव्यक्ति के रूप में स्वीकार किया।
- उन्होंने आईसीएस की लिखित परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन घुड़सवारी परीक्षा छोड़ने के कारण अयोग्य घोषित कर दिए गए।
आध्यात्मिक जीवन एवं दार्शनिक दृष्टिकोण
- अरबिंदो घोष दार्शनिक, आध्यात्मिक नेता एवं एक कुशल लेखक तथा एक कवि थे, उनका साहित्यिक योगदान व्यापक और विविध है।
- श्री अरबिंदो ने वर्ष 1908 में अलीपुर षड्यंत्र केस में जेलवास के दौरान उन्होंने ध्यान एवं योग की साधना प्रारंभ की, और राष्ट्रवाद को ईश्वर का कार्य और राष्ट्रवादियों को ईश्वर के साधन कहा।
- जेल के अनुभव ने उनके जीवन को आध्यत्मिक रूप से बदल दिया।
- उनके अनुसार आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नही है और दोनों का अनुभव योग व साधना से किया जा सकता है।
- उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध की वकालत की, जो आवश्यकता रूप से अहिंसक नहीं था।
- वे क्रांतिकारी अलगाववाद से भी जुड़े और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध गुप्त आंदोलन में सक्रिय रहे।
- उन्होंने आत्म-सहायता, आत्म-विकास और आत्म-संरक्षण पर जोर दिया।
- उन्होंने उदारवादी कांग्रेसी नेताओं और उनके दृष्टिकोण की आलोचना की।
- राष्ट्रीय अस्तित्व के लिए आवश्यक होने पर हिंसा के प्रयोग का समर्थन किया।
- औपनिवेशिक सहयोग को अस्वीकार्य किया; पूर्ण प्रतिरोध पर जोर दिया।
स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान
- श्री अरबिंदो एक प्रखर विद्वान, क्रांतिकारी, आध्यात्मिक दूरदर्शी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख व्यक्ति थे, उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सशस्त्र प्रतिरोध की वकालत की और स्वराज की अवधारणा को बढ़ावा दिया।
- भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के चलते वर्ष 1902 से 1910 तक उन्होंने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के संघर्ष में भाग लिया।
- इसके साथ ही अंग्रेजों में उन्हें तीन बार गिरफ्तार किया, दो बार देशद्रोह के आरोप में और एक बार युद्ध छेड़ने की साजिश के आरोप में उन्हें वर्ष 1908 में अलीपुर बम कांड में गिरफ्तार किया गया था।
- अरबिंदो ने वन्दे मातरम, कर्मयोगिन और युगांतर के माध्यम से, युवा भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया एवं राष्ट्रवाद, पूर्ण स्वतंत्रता की वकालत की और जन आन्दोलनों के लिए रणनीतियों की रुपरेखा तैयार करते हुए ब्रिटिश शासन की आलोचना की।
प्रमुख कृतियाँ
- सावित्री एक किवदंती और एक प्रतीक(महाकाव्य)
- द लाइफ डिवाइन
- मानव एकता का आदर्श
- भगवतगीता और उसका संदेश
- आवर ऑफ़ गॉड
- योग के आधार
- वन्दे मातरम नामक एक अंग्रेजी अख़बार (वर्ष 1905)
- मनुष्य का भविष्य विकास
- गीता पर निबंध
श्री अरबिंदो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ही नहीं बल्कि उन्होंने भारतीय आध्यात्म को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दी। ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए उनकी व्यावहारिक रणनीतियों के कारण श्री अरबिंदो घोष को “ भारतीय राष्ट्रवाद का पैगंबर” कहा गया। उनके संपूर्ण एवं एकीकृत योग, अतिमानस सिद्धांत और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह दर्शाया गया है की मानव जीवन केवल भौतिक सुख तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उनका लक्ष्य दिव्यता की ओर है। अरबिंदो को आज भी एक महान ईश्वरवादी, योगी, कवि एवं राष्ट्रवादी के रूप में याद किया जाता है। उनके जीवन में इस बात का प्रमाण है कि सच्चा स्वतंत्रता संग्राम ,राजनीतिक दलों के साथ- साथ आध्यत्मिक आंदोलन भी निहित है।