कामाख्या मंदिर अंबुबाची मेला: असम का पवित्र तांत्रिक उत्सव

अंबुबाची मेला 2025: कामाख्या मंदिर में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्व
पूर्वोत्तर भारत के सबसे पवित्र और रहस्यमयी धार्मिक आयोजनों में से एक, अंबुबाची मेला हर वर्ष गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर में मनाया जाता है। यह उत्सव देवी कामाख्या के वार्षिक मासिक धर्म और पृथ्वी की उर्वरता का प्रतीक है, जो तांत्रिक साधनाओं, आध्यात्मिक परंपराओं और सांस्कृतिक विविधता को एक साथ जोड़ता है।
अंबुबाची मेले के बारे में:
- असम के गुवाहाटी में नीलाचल पहाड़ी पर स्थित कामाख्या मंदिर में आयोजित होने वाला एक प्रमुख वार्षिक उत्सव है, जो पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े धार्मिक उत्सवों में से एक है। ये मानसून के मौसम (आमतौर पर जून) के दौरान मनाया जाता है। यह पृथ्वी के उर्वरता चक्र और मानसून की शुरुआत को दर्शाता है।
- कामाख्या मंदिर में अम्बुबाची मेला देवी के वार्षिक मासिक धर्म के अवसर पर आयोजित किया जाता है, जो असम में प्रजनन क्षमता और तांत्रिक परंपराओं का सम्मान करने के लिए भक्तों को आकर्षित करता है।
- अंबुबाची शब्द का अर्थ है “बहता हुआ जल या जल का प्रवाह” जो मानसून की शुरुआत और पृथ्वी की उर्वरता से जुड़ा है। यह उत्सव प्रजनन शक्ति, मानसून और पृथ्वी को एक उर्वर मातृशक्ति के रूप में देखने की प्राचीन सांस्कृतिक मान्यता को दर्शाता है।
- अम्बुबाची मेला, जो हिंदू माह “आषाढ़” के सातवें दिन से दसवें दिन तक रहता है, इस समय पर मंदिर के दरवाजे भक्तों के लिए बंद रहते है। ऐसा माना गया है कि देवी कामाख्या का वार्षिक मासिक धर्म इसी समय होता है। इसी कारण कामाख्या देवी को रक्तस्राव की देवी के रूप में भी जाना जाता है।
- बारहवें दिन मंदिर के दरवाजे औपचारिक रूप से खोल दिए जाते है और मंदिर परिसर में एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व:
- यह तांत्रिक साधनाओं के सबसे प्रतिष्ठित केंद्रों में से एक है। इसे भारत के 51 शक्तिपीठों में से सबसे पुराने में से एक माना जाता है। इस दौरान तांत्रिक और साधु-संत सिद्धियां प्राप्त करने व विशेष अनुष्ठान करने के लिए यहां आते है। यह मेला तंत्र साधना के लिए सबसे शक्तिशाली समय माना जाता है।
- यह अनुष्ठानिक मेला मासिक धर्म से जुड़ा होने के कारण भारत के अन्य भागों की तुलना में असम में मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाएं कम है।
- असम में लड़कियों के स्त्रीत्व (femininity) प्राप्त करने का उत्सव तुलौनी बिया (छोटी शादी) नामक अनुष्ठान के साथ मनाया जाता है।
- यह मेला सैनिटरी पैड के उपयोग के माध्यम से आगंतुकों के बीच मासिक धर्म स्वच्छता को बढ़ावा देने का भी एक अवसर है।
- इस मेले में कम से कम 5 लाख श्रद्धालु शामिल होते है, जिनमें से अधिकतर पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड तथा कई विदेशी लोग भी आते है, जिससे राज्य के पर्यटन और उससे जुड़े राजस्व में वृद्धि होती है।
कामाख्या मंदिर:
- यह मंदिर नीलाचल पहाड़ियों पर स्थित है, जिसका उत्तरी मुख ब्रह्मपुत्र नदी की ओर झुका हुआ है।
- कामाख्या मंदिर में अम्बुबाची मेला एक तपस्या अनुष्ठान है, जो शक्ति अनुष्ठानों के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है।
- यह तांत्रिक साधनाओं के सबसे प्रतिष्ठित केंद्रों में से एक है। इसे भारत के 51 शक्तिपीठों में से सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है,जिसमें से प्रत्येक भगवान शिव की पत्नी सती के शरीर के एक अंग का प्रतिनिधत्व करता है जो मुख्य रूप से देवी कामाख्या को समर्पित है।
आध्यात्मिक विशेषताएं:
- दस महाविद्यालयों के मंदिरों से घिरा हुआ:
काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी,भैरवी, छित्रमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमलात्मिका।
आध्यात्मिक विशेषताएं:
- दस महाविद्यालयों के मंदिरों से घिरा हुआ:
काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी,भैरवी, छित्रमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमलात्मिका।
कामाख्या मंदिर की वास्तुकला:
- वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण 1565ई. में 11वीं -12वीं शताब्दी के खंडहरों का उपयोग करके किया गया था।
- इसका निर्माण राक्षस राजा नरकासुर ने कराया था, लेकिन अभिलेख केवल 1565 से ही उपलब्ध है, जब कोच राजा नरनारायण ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था।
- इसे दो अलग-अलग शैलियों अर्थात पारंपरिक नागरा और सरसेनिक या मुगल वास्तुकला शैली के संयोजन से तैयार किया गया था।
- इस इस असामान्य संयोजन को नीलाचल वास्तुकला शैली का नाम दिया गया है।
- यह असम का एकमात्र मंदिर है जिसका भूतल पूर्णत: विकसित है।
- इस मंदिर में पांच कक्ष है जिनमें गर्भगृह, अंतराल, जगन मोहन, भोगमंदिर और नटमन्दिर या ओपेरा हॉल है, जहां सूफी मंदिरों से जुड़े पारंपरिक नृत्य और संगीत का प्रदर्शन किया जाता है।
- मुख्य मंदिर में एक संशोधित सारसेनिक गुंबद है, अंतराल में दो छतों वाला डिजाइन है, भोग मंदिर में पांच गुंबद है जो दिखने में मुख्य मंदिर के समान है और नट मंदिर में एक शंख- छत है जिसका अंत अर्द्धवृत्ताकार है जो असम में पाए जाने वाले कुछ अस्थायी नामघरों या प्रार्थना कक्षों के समान है।
यह मेला न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह उत्सव प्रकृति और मानव के बीच गहरे संबंध को रेखांकित करता है। मानसून के साथ पृथ्वी की उर्वरता का उत्सव मनाना पर्यावरण संरक्षण और कृषि पर निर्भर समाज की समझ को दर्शाता है। साथ ही, यह उत्सव विभिन्न समुदायों को एक मंच पर लाता है, जिससे समाजिक एकता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है।