6th september 2025
lifeofindian
“चांद को क्यों कहते हैं चंदा मामा?” भारत में चांद सिर्फ आकाशीय पिंड नहीं, बल्कि भगवान, आशा और कहानियों का प्रतीक है।
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कथा है कि चंद्रदेव को श्राप मिला और उनका क्षय होने लगा। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की और शिवजी ने उन्हें जटाओं में स्थान दिया। तभी से चांद आशा और पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है।
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छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने मस्तक पर चंद्र-कोर धारण किया। यह स्वतंत्रता और स्वराज्य का प्रतीक था। संदेश: अंधेरी रात के बाद नया चांद ज़रूर उगता है।
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रामचंद्र जी बचपन में तब तक नहीं सोते थे, जब तक माँ उन्हें पानी में चांद का प्रतिबिंब न दिखाए। माँ का भाई = मामा, इसलिए चांद को प्यार से चंदा मामा कहा जाने लगा।
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मास (Month) शब्द की जड़ ‘मां’ से मानी जाती है। पूर्णिमा = पूर्ण-मा, अमावस्या = अ-मा। बच्चों की कहानियों और लोकगीतों में भी चंदा मामा हमेशा मौजूद हैं।
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चंद्रदेव को हिरण या हंस द्वारा खींची गई रथ पर दर्शाया गया है। चांद पर खरगोश का निशान शशांक कहलाता है। जataka कथा के अनुसार, वह खरगोश स्वयं बुद्ध थे।
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भारत में चांद सिर्फ रोशनी नहीं, बल्कि भावनाओं का प्रतीक है। बच्चों की लोरियों से लेकर धार्मिक ग्रंथों तक – चंदा मामा हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं।
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